
दीपक कुमार रथ
(editor@udayindia.in)
आत्मनिर्भर भारत अभियान पर जोर देने के साथ ही भारत वैश्विक समुदाय में अपनी मजबूत पहचान स्थापित कर रहा है। स्वदेशी हथियारों और रक्षा उत्पादों का निर्माण, विनिर्माण क्षेत्र की जरुरतों को पूरा किया जा रहा है। बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाया जा रहा है। जिससे विदेश से आयात में कमी आई है। इन कारणों से ना केवल अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है, बल्कि दुनिया भर में भारत एक बड़ी ताकत के रुप में उभर रहा है। वास्तव में, भारत के पास साल 2030 तक एक ट्रिलियन डॉलर का सामान का निर्यात करने की क्षमता हासिल कर चुका है और यह एक प्रमुख वैश्विक उत्पादन केंद्र बनने की राह पर आगे बढ़ रहा है। विनिर्माण क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था में एक बड़ी भूमिका अदा कर रहा है। क्योंकि यह सकल घरेलू उत्पाद का 17 फीसदी है और इसमें 27.3 मिलियन श्रमिकों को रोजगार हासिल हो रहा है। इसके अलावा एस एंड पी ग्लोबल द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार मैन्यूफैक्चरिंग परचेजिंग इंडेक्स साल 2022 के दिसंबर में 57.8 तक पहुंच चुका है। जो कि 2020 से अब तक की उच्चतम सीमा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का कहना है कि साल 2023 में भारत अकेले ग्लोबल ग्रोथ में 15 फीसदी का योगदान करेगा और वैश्विक अर्थव्यवस्था में चमकदार स्थान पर बना रहेगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारा देश एक ऐतिहासिक पड़ाव पर है और अब वक्त आ चुका है कि भारतीय व्यापारिक व्यवस्था को खुद में बदलाव लाना होगा। इसके अलावा उन्हें आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में निवेश के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण भी अपनाना होगा। क्योंकि वास्तव में आत्मनिर्भर भारत अभियान में ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा परिकल्पित नए भारत के निर्माण की कुंजी छिपी हुई है। जिसका उद्देश्य भारत और उसके नागरिकों को हर मायने में स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाना है। जिसके लिए सरकार ने आत्मनिर्भर भारत के पांच स्तंभ तय किए है- अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचा, व्यवस्था, विविधतापूर्ण जनसांख्यिकी और मांग। इसके लिए सरकार ने कई साहसिक कदम उठाए हैं। जैसे कृषि उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला में सुधार, तार्किक कर प्रणाली, सरल और स्पष्ट कानून, सक्षम मानव संसाधन और मजबूत वित्तीय व्यवस्था। इसलिए अब विनिर्माण क्षेत्र को नए नजरिए के साथ देखे जाने की जरुरत है। हालांकि इस क्षेत्र में जो रुकावटें थीं, उन्हें दूर करने की प्रक्रिया अब लगभग संपन्न हो गई है। यहां पर यह उल्लेखनीय है कि कोविड के बाद से दुनिया भर के तमाम संस्थानों ने भारत और दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था के बारे में आकलन किया है। जिनके बारे में पढ़कर सामान्य तौर पर भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है। लेकिन इन सभी भविष्यवाणियों और विवेचनाओं को पढ़कर एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि आने वाले समय में भारत की सकल घरेलू उत्पाद नई ऊंचाइयां छुएगा। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी बताया है कि साल 2024 में भारत की विकास दर 6.8 फीसदी रहेगी, जो कि चीन और पश्चिमी देशों से बहुत ज्यादा है।
आजादी के बाद से ही भारत में मैन्यूफैक्चरिंग, ऑटोमोबाइल, मोबाइल, बुनियादी ढांचे, रक्षा जैसे कई बड़े और अहम क्षेत्र विदेशी कंपनियों के रहमो करम पर निर्भर थे। इसकी वजह थी सरकार की दोहरी नीतियां, आधुनिकीकरण की कमी, नेताओं का निजी स्वार्थ और निजी भारतीय कंपनियों की सहभागिता में कमी। जिसकी वजह से हमारा बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भंडार कभी भी एक सीमा से ज्यादा जमा नहीं हो पाया। ऑटोमोबाइल, रक्षा, बुनियादी ढांचा, रक्षा जैसे बड़े सेक्टर किसी भी देश को रणनीतिक स्वायत्तता प्रदान करते हैं। जो कि राष्ट्रीय संप्रभुता और स्थिरता के लिए आवश्यक है। विनिर्माण क्षेत्र की आत्मनिर्भरता किसी भी देश की सुरक्षा के लिए बेहद आवश्यक है। जो कि बाहरी स्रोतों पर निर्भरता को कम करती है और देश को राजनीतिक और दूसरे बाहरी दबावों से भी मुक्त रखती है। स्वदेशी उत्पादों को विकसित करके इस सरकार ने स्पष्ट संकेत दिया है कि अगर दृढ़ इच्छा शक्ति वाला गुड गवर्नेंन्स हो तो रातोंरात बहुत कुछ किया जा सकता है। अन्यथा पूर्ववर्ती नेताओं की कमजोर नीतियों और पराधीन मानसिकता ने मैन्यूफैक्चरिंग और दूसरे सेक्टर्स में भारत को दबाव में रखने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। वर्तमान सरकार को इस बात के लिए साधुवाद दिया जाना चाहिए कि उन्होंने नए भारत की सिर्फ परिकल्पना ही नहीं तैयार की है, बल्कि उसे पूरा करने के लिए दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ अपने पूरे संसाधन झोंक दिए हैं।