
देश को आत्म-निर्भर बनाने में रक्षा कंपनियों का काफी बड़ा योगदान है, प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने ऐलान किया है कि अगले साल तक भारत अपना रक्षा निर्यात कई गुना बढ़ा देगा। जिसमें ब्रह्मोस का बहुत बड़ा योगदान है, क्योंकि दुनिया के कई देशों ने ब्रह्मोस खरीदने में रुचि दिखाई है। ब्रह्मोस प्रोजेक्ट के डायरेक्टर ऑफ प्रोडक्ट सप्लाई एंड मार्केटिंग प्रवीन पाठक ने उदय इंडिया के न्यूज एडिटर अंशुमान आनंद के साथ हुए साक्षात्कार में बताया कि ब्रह्मोह भारत का अग्रदूत और साथ ही यह काफी भारी मात्रा में मुद्रा प्राप्ति का एक मुख्य श्रोत है।
ब्रह्मोस के एक्सपोर्ट और सप्लाई के प्लान्स कितने आगे तक बढ़े हैं और किस तरिके से देश को विदेशी मुद्रा दिलाने में अहम भूमिका निभा रहा हैं?
ब्रहमोस इंडिया और रुस का एक ज्वाइंट वेंचर है । हमने 1998 में यह कंपनी शुरु की थी और 2004 से यह मिसाइल हम भारतीय सैन्य बलों को सप्लाई कर रहे हैं। प्रधानमंत्री जी की विचारधारा है कि इंडिया एक डिफेंस इंपोर्टर से डिफेंस एक्सपोर्टर बने, उसके लिए ब्रहमोस बहुत ही समय से काम कर रहा है। साल 2022 में हमने अपना पहला कांन्ट्रैक्ट फिलीपींस के साथ साईन किया है। जिसकी पूरी राशि 300 मिलियन डॉलर है। इसी प्रकार से और भी देश के साथ काम कर रहे हैं। करीब चार-पांच और ऐसे देश हैं जिनके साथ हम एक्सपोर्ट को लेकर काम कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि इस साल एक देश और इस लिस्ट में सामिल हो जाएगा, जिसे भारत स्वयं ब्रह्मोस एक्सपोर्ट करेगा। जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है कि हमें अगले साल तक उनके द्वारा तय किए गए लक्ष्य तक पहुंचना है तो हम कोशिश करेंगे कि इस लक्ष्य का अधिकतर हिस्सा ब्रहमोस लाने में कामयाब रहेगा।
फिलीपींस के आलावा, वियतनाम, यूएई जैसे नौ देशों ने ब्रह्मोस में दिलचस्पी दिखाई है। ऐसे में क्या डिमांड के हिसाब से ब्रह्मोस का प्रोडक्शन हो पा रहा है?
हमारी प्रोडक्शन क्षमता काफी अच्छी है, हमने शुरु से ही अपनी प्रोडक्शन क्षमता को बढ़ाने के लिए काम किया है। आज की तारीख में हैदराबाद, नागपुर,पिलानी, त्रिवेंद्रम, में प्रोडक्शन सुविधा है। हाल ही में रक्षा मंत्रालय के द्वारा उत्तर प्रदेश के लखनऊ कॉरिडोर में काफी भूमि आवंटित की है। जिसमें हम एक और फैक्ट्री लगा रहे हैं। जिसके अंदर हम ब्रह्मोस-NG का उत्पादन अगले दो सालों में शुरु कर देंगे। अगले दो सालों में वो फैक्ट्री भी बनकर तैयार हो जाएगी और वहां पर इस मिसाइल का उत्पादन शुरु हो जाएगा। जैसे-जैसे हमारे आयातक देशों की संख्या बढ़ रही है, उसी के हिसाब से हमारा प्रोडक्शन भी बढ़ रहा है।
मुख्य ब्रहमोस मिसाइल और ब्रह्मोस-NG में क्या अंतर है?
प्रवीण पाठक, डायरेक्टर- ब्रहमोस काफी बड़ी और भारी मिसाइल है। इसकी लम्बाई 9 मीटर है और वजन करीब 3 टन है। इस वजह से इसे हम हर प्लेटफार्म पर लगा नहीं पाते थे। इस कारण से हमने रिसर्च एंड डेवलपमेन्ट करके एक नए मिसाइल का निर्माण कार्य चल रहा है। जिसे हम ब्रहमोस-NG यानि कि ब्रह्मोस नेक्स्ट जेनरेशन कह रहे हैं। जिसमें हमने बहुत तरीके के कंपोजिट मैटेरियल का उपयोग किया है औऱ बहुत अलग तकनीक का प्रयोग किया है। ब्रह्मोस-NG में वजन और लंबाई दोनों ही कम करने में हम सक्षम हुए हैं। अब ये मिसाइल 6 मीटर लंबी और वजन 1.4 टन है जो कि आधे से भी कम है। इस वजह से जहां सुखोई में एक ब्रह्मोस लगता था वहां अब ब्रहमोस-NG तीन की संख्या में लगेंगे। मिग 29 में अब 2 मिसाइल लग जाएंगे। इसी प्रकार से भारत में बने तेजस जैसे विमान में भी हम ब्रह्मोस लगाने में लगे हुए हैं और उसमें हम सफल होंगे।
NG ब्रह्मोस एक अत्याधुनिक मिसाइल है, इसकी मारक क्षमता काफी तेज है, तो क्या वजन और लंबाई घटाने से इसकी मारक क्षमता पर कोई प्रभाव तो नहीं पड़ेगा?
जी नहीं इसकी मारक क्षमता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। क्योंकि जैसा मैने बताया कि हमने इसकी लंबाई और वजन कम किया है पर इसकी मारक क्षमता उतनी ही प्रबल है। ये निर्भर करती है कि ये किस गति से जा रही है। ब्रह्मोस-NG की वेलोसिटी ब्रह्मोस से थोड़ी अधिक होगी। इसकी मारक क्षमता हमें पहले की तरह ही प्राप्त होगी।
ब्रह्मोस रुस के सहयोग से बनी मिसाइल है और पश्चिमी देशों ने रुस पर फिलहाल प्रतिबंध लगा रखा है। ऐसे में ब्रह्मोस की डील दूसरे देशों के साथ करने में किसी तरह की बाधा तो नहीं आएगी?
रुस हमारा एक बहुत ही महत्वपूर्ण साथी है डिफेन्स मामले में और जब सब देश से हम तकनीक की डिमांड कर रहे थे 1965 या 1971 में तब एक रुस ही हमारा एकमात्र साथी था। जिसने खुलकर हमारा साथ दिया और तब से आज तक रक्षा क्षेत्र में दोनो ही देश मिलकर कार्य करते हैं। आज के समय में अगर कोई देश है जो इस प्रकार की मिसाइल की तकनीक हमारे साथ साझा कर रहा है तो वह रुस ही है। हमें अभी किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं दिख रही है। बल्कि मैं तो कहूंगा कि हमारे संबंध और भी ज्यादा मजबूत हो रहे हैं। क्योंकि असली दोस्त का पता मुसीबत के समय ही चलता है।
मैं यह जानना चाहता था कि रुस पर लगे प्रतिबंध से ब्रह्मोस के एक्सपोर्ट पर कोई असर तो नहीं पड़ेगा?
जी नहीं इस बैन का ब्रह्मोस के एक्सपोर्ट पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
अगले तीन सालों में ब्रह्मोस के एक्सपोर्ट के जरिए एक अनुमान के मुताबिक कितनी विदेशी मुद्रा इकठ्ठा करने का क्षमता रखते हैं?
हमारी इच्छा तो यही होगी कि ज्यादा से ज्यादा मुद्रा आए। लेकिन डिफेन्स एक्पोर्ट की डील में काफी समय लगता है। जो आसानी से संभव नहीं होता है। उम्मीद है कि इस साल ही एक और देश के साथ हमारी डील फाइनल हो जाएगी।
क्या आप वियतनाम के बारे में संकेत दे रहे हैं?
मैं किसी भी देश का नाम फिलहाल लेना नहीं चाहूंगा। क्योंकि जब तक डील पूरी ना हो जाए, तब तक इसकी घोषणा नहीं की जा सकती। इसलिए इस बारे में फिलहाल मैं कोई जानकारी नहीं दे सकता।