
26 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा गणतंत्र दिवस की परेड में मुख्य अतिथि थे। वैसे तो ओबामा से पहले पांच अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आ चुके हैं, लेकिन ओबामा पहले ऐसे राष्ट्रपति हैं, जिन्हें गणतंत्र दिवस के मौके पर बतौर मुख्य अतिथि बुलाया गया। गणतंत्र दिवस के दौरान भारत ने दुनिया को अपनी संस्कृति की झलक के साथ-साथ अपनी सैन्य शक्ति से अवगत कराया। इस बार भारत की शक्ति का अवलोकन करने वाला अमेरिका है जो भारत से ही नहीं दुनिया के सभी देशों से बहुत आगे है।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत दौरे पर महत्वपूर्ण समझौते हुए हैं। दोनों देशों ने परमाणु समझौते पर गतिरोध भी दूर कर लिया है। कहा जा रहा है कि यह दौरा अभूतपूर्व है, लेकिन भारत को कीमत भी चुकानी पड़ी है, जो सामान्य नहीं है। 25 जनवरी को प्रोटोकॉल तोड़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओबामा दंपत्ति की अगवानी करने हवाई अड्डे पहुंचे। तभी समझ में आ गया था कि यह यात्रा कुछ अलग किस्म की है। भारत ने ठान ली है कि वह अमेरिका के साथ संबंधों को हर कीमत पर एक नई ऊंचाई तक ले जाएगा। कहा जा रहा है कि मोदी और ओबामा के बीच सहमति बनी है कि परमाणु संयंत्र में दुर्घटना होने पर जिस अमेरिकी कंपनी या कंपनियों ने उपकरण सप्लाई किया था, उसकी जवाबदेही को कम किया जाए। पिछले आठ वर्षों से इसी मुद्दे पर गतिरोध बना हुआ था, जिससे भारत को अमेरिका के साथ हुए परमाणु करार के बाद भी कोई सुविधा नहीं मिल रही थी। अब गतिरोध समाप्त हो गया है। मोदी की सरकार एक बीमा फंड बनाएगी, जिसके तहत मुआवजे की राशि मिलेगी। यानी यूएस की कंपनियों की जवाबदेही एक प्रकार से खत्म हो गयी है। दिलचस्प है कि ओबामा से बात करने के बाद मोदी ने स्वीकार किया है कि 2008 में भारत व अमेरिका के बीच हुआ परमाणु समझौता दोनों देशों के आपसी संबंधों का केंद्रीय तत्व था। शायद मोदी यह भूल गए कि उनकी पार्टी ने ही इस समझौते का विरोध किया था। वर्तमान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने तब इसकी तुलना जहांगीर द्वारा ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत में व्यापार करने के लिए दी गयी रियायतों व इस संबंध में किये गए समझौते से की थी। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि भारत ने अमेरिका के सामने समर्पण कर दिया है। भारत की ऐसी क्या मजबूरी थी, यह बड़ा सवाल है।
26 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा गणतंत्र दिवस की परेड में मुख्य अतिथि थे। वैसे तो ओबामा से पहले पांच अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आ चुके हैं, लेकिन वह पहले ऐसे राष्ट्रपति हैं, जिन्हें गणतंत्र दिवस के मौके पर बतौर मुख्य अतिथि बुलाया गया। गणतंत्र दिवस के दौरान भारत ने दुनिया को अपनी संस्कृति की झलक के साथ-साथ अपनी सैन्य शक्ति से भी अवगत कराया। इस बार भारत की शक्ति का अवलोकन करने वाला अमेरिका है, जो इस मामले में भारत से ही नहीं, दुनिया के सभी देशों से बहुत आगे है। सुपर पावर की रेस में अमेरिका को चीन के साथ-साथ भारत से भी टक्कर मिल रही है।
16.8 ट्रिलियन डॉलर के साथ अमेरिका विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। वहीं भारत की जीडीपी 1.9 ट्रिलियन डॉलर की है। अमेरिका की करेंसी ‘डॉलर’ है और भारत की करेंसी ‘रुपया’ है। इस समय भारत में एक डॉलर का मूल्य लगभग 60 रूपये है। खाड़ी देश तेल का आदान-प्रदान सिर्फ डॉलर में ही करते हैं। वल्र्ड बैंक को सबसे ज्यादा मदद अमेरिका से मिलती है। 2006 से लेकर 2013 तक अमेरिका ने वल्र्ड बैंक को 13.4 बिलियन डॉलर की सहायता दी है। भारत वल्र्ड बैंक को कर्ज देता भी है, कर्ज लेता भी है। 2006 व 2013 के बीच भारत ने विश्व बैंक को 65.9 मिलियन डॉलर की मदद की और 8.3 बिलियन डॉलर कर्जे के रूप में लिया।
अमेरिका में प्रति व्यक्ति आय लगभग 32 लाख रूपए है, वहीं भारत में प्रति व्यक्ति आय 92,000 रूपए के करीब है। अमेरिका का सैन्य खर्च कुल 600 बिलियन डॉलर है जबकि भारत सिर्फ 38 बिलियन डॉलर अपनी सेना पर खर्च करता है। अमरीका के 23 देशों में अपने मिलिट्री ठिकाने हैं, जिससे अमेरिका पूरे विश्व पर नियंत्रण रख सकता है। भारत के सिर्फ 5 देशों में सैन्य ठिकाने हैं, वो भी ज्यादातर पड़ोसी देशों में। अमेरिका के पास 7,650 न्युक्लियर हथियार हैं, जबकि भारत के पास 80 और 100 के बीच हैं।
अब तक 334 अमेरिकी अंतरिक्ष की यात्रा कर चुके हैं, जबकि भारत से सिर्फ राकेश शर्मा सन् 1984 में रूस की मदद से अंतरिक्ष गए थे। अमेरिका ने सन् 1969 में अपने नागरिक को चांद पर भेजा था और भारत ने 2008 में अपना यान चांद में भेजा। भारत अब यह दावा कर रहा है कि सन 2021 तक कोई भारतीय भी चांद तक पहुंच जायेगा। अमेरिका के पास अंतरिक्ष से चलने वाले हथियार हैं। भारत ने अभी इस दिशा में प्रयास शुरू किए हैं। अमेरिका की लगभग 85 फीसदी जनता इंटरनेट का इस्तेमाल करती है, जबकि भारत की सिर्फ 15 फीसदी जनता इंटरनेट का उपयोग करती है। वर्ष 2007 से दूसरे देशों के मुकाबले अमेरिका से सबसे ज्यादा पर्यटक भारत आ रहे हैं। वर्ष 2013 में 10 लाख से ज्यादा अमेरिकी टूरिस्ट भारत आए और भारत से तकरीबन साढ़े आठ लाख लोग अमेरिका गए। वर्ष 1995-96 में जहां सिर्फ 470 भारतीय छात्र अमेरिका पढऩे गए थे, वहीं उनकी संख्या वर्ष 2012-13 में बढ़कर लगभग 4,600 हो गई। दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले अमेरिका में सबसे ज्यादा प्रवासी भारतीय रहते हैं। हॉलीवुड का कारोबार 10.9 बिलियन डॉलर का है और बॉलीवुड का कारोबार 1.5 बिलियन डॉलर का है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत और अमेरिका के संबंध पहले के मुकाबले अधिक मधुर हुए हैं। एक सबसे पुराना लोकतंत्र है, दूसरा सबसे बड़ा लोकतंत्र। यही खासियत इन दोनों को करीब लाती है। वर्ष 1990 में कंगाली की कगार पर पहुंचा भारत इस समय चीन के बाद तेजी से बढ़ती दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारत भले ही अमेरिका की तुलना में हर क्षेत्र में पीछे हो, लेकिन भारत की प्रगति की गति इस समय इतनी है कि वे दिन दूर नहीं, जब अमेरिका इसे मुख्य प्रतिद्वंद्वी के तौर पर देखने लगेगा। भारत और अमेरिका की बीच न्युक्लियर डील फाइनल हो गई है। मोदी और ओबामा की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद विदेश सचिव सुजाता सिंह ने कहा कि तीन दौर की बातचीत के बाद न्युक्लियर डील की सभी बाधाएं दूर कर ली गई हैं। सिविल लायबिलिटी न्यूक्लियर डैमेज (सीएलएनडी) ऐक्ट 2010 के मुताबिक, किसी भी परमाणु दुर्घटना की स्थिति में पीडि़त पक्ष को मुआवजा देने के लिए 1500 करोड़ रुपये अलग रखने होते हैं। भारत ने इस मुद्दे पर नरम पड़ते हुए अपनी तरफ से 750 करोड़ रुपये की सरकारी गांरटी जोड़ दी है। इस तरह अब 750 करोड़ रुपये भारत सरकार देगी।
क्या सुधरेंगे भारतीय धर्मांध?
अपने भारत दौरे के आखिरी दिन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा कि वे भारत के साथ मजबूत रिश्ता चाहते हैं। दिल्ली के सिरीफोर्ट ऑडिटोरियम में करीब 2,000 लोगों के बीच उन्होंने भारत के साथ न्युक्लियर एनर्जी के अलावा सोलर और विंड जैसी क्लीन, रिन्यूएबल एनर्जी में सहयोग बढ़ाने की बात कही। धर्म पर बात करते हुए ओबामा ने कहा कि महात्मा गांधी ने कहा था कि सभी धर्म एक ही पेड़ के फूल हैं। धर्म का गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। धर्म के नाम पर नहीं बंटेगा तो भारत जरूर तरक्की करेगा। महात्मा गांधी की भूमि पर आने को लेकर कहा कि मेरे लिए यह सौभाग्य की बात है, क्योंकि गांधी की विचारधारा ने दुनिया को राह दिखाई है व उनका संदेश अभी तक प्रासंगिक है। सवाल यह है कि धर्म के नाम पर समाज को बांटकर सियासी रोटियां सेंकने वाले कुछ दलों के भारतीय राजनेता अपनी आदतों से बाज आएंगे? मुझे लगता है, नहीं। क्योंकि भारत में उलटी धारा बहाकर चर्चा में बने रहने का प्रचलन है। यही वजह है कि यहां के कुछ राजनेता व पार्टियां केवल उन्हीं कार्यों को करने की बात करती हैं, जिसे वह कभी भी नहीं कर सकती और उसका लाभ उसे मिल जाता है।
ओबामा की भारत यात्रा की लाभ-हानि पर अब चर्चा छिड़ी हुई है। कुछ लोग इसे भारत के हित में बता रहे हैं तो कुछ अमेरिका के हित में। जबकि कुछ लोगों का मानना है कि इस यात्रा से दोनों देशों को बराबर का लाभ हुआ है। बात भी सही है, क्योंकि कुछ मुद्दों को छोड़ दें तो इस यात्रा में कोई भी ऐसा उल्लेखनीय नहीं रहा है, जिसे सिर्फ भारत के लिए उपयोगी कहा जाए। बातें तो बहुत हुई हैं। दोनों तरफ से खूब लफ्फाजी की गई है। इसी क्रम में ओबामा ने भारत को अमेरिका का सर्वश्रेष्ठ साझेदार बताया है। परमाणु हथियार मुक्त विश्व हमारा उद्देश्य होना चाहिए। हाल के वर्षों में भारत ने किसी अन्य देश के मुकाबले अधिक लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है। हम भारत की स्वच्छ उर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के महत्वकांक्षी लक्ष्यों का स्वागत करते हैं। हम दो लोकतंत्र, सबसे बड़ा भारत और सबसे पुराना अमेरिका, मिलकर मजबूत दुनिया का निर्माण कर सकते हैं। कहा कि भारत-अमेरिका के रिश्तों को नई ऊंचाई मिली है और यह रिश्ता काफी गहरा है। भारतीयों की तारीफ करते हुए ओबामा ने कहा कि भारत में हुनर की कोई कमी नहीं है। ओबामा ने कहा कि अमेरिका संयुक्त राष्ट्र सिक्योरिटी काउंसिल में भारत की स्थायी सदस्यता चाहता है। साथ ही भारत को भी अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर अमेरिका का साथ देना चाहिए। भारत-यूएस के साथ होने से दुनिया महफूज होगी। ओबामा ने जलवायु परिवर्तन पर कहा कि यह दुनिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। हिमालय के ग्लेशियर पिघल रहे हैं। भारत जैसे देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए स्वच्छ ईंधन अपनाने की आवश्यकता है। निश्चित रूप से कुछ बातें ऐसी हैं, जिसे सुनकर सीना गर्व से चौड़ा हो रहा है।
भारत में महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक समझने वालों पर ओबामा की ये बातें व्यंग्य हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय महिलाओं में अपार क्षमता है। महिलाएं सफल होंगी तो देश सफल होगा, महिलाएं शिक्षित होंगी तो बच्चे शिक्षित होंगे। नारी शक्ति से देश तरक्की करता है। बेटी को बेटे जैसा समान अवसर देना जरूरी है। इससे पहले गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर मोदी और ओबामा का साझा संदेश कूटनीतिक कामयाबी के साथ-साथ बॉडी लैंग्वेज के हिसाब से भी महत्वपूर्ण बना, क्योंकि देह भाषा कूटनीतिक दौरों की एक महत्वपूर्ण किताब होती है। मोदी ने चाय तो पिलाई मगर इस अंदाज के साथ कि बराबरी पर बात हो रही है। ‘मेरे और बराक के बीच’ बोलकर प्रधानमंत्री मोदी ने मिस्टर प्रेसिडेंट बोलने की परंपरा को भी पुराना कर दिया। इससे पहले कि जानकार इस केमिस्ट्री की चर्चा करते, प्रधानमंत्री ने ही कह दिया कि मेरे और बराक के बीच केमिस्ट्री बन गई है। अमरीका और भारत के बीच ऐसी कोई खास असहजता नहीं है जिससे कुछ समझौता न होने पर हाय-तौबा मचाई जाए, लेकिन न्युक्लियर डील पर क्या दोनों देश एक कदम आगे बढ़े, इसे लेकर बहस हो रही है कि राष्ट्रपति ओबामा ने अपनी कार्यकारी शक्ति का इस्तेमाल कर भारतीय परमाणु रिएक्टरों को जांच के प्रावधान से मुक्त कर दिया है। संसद के बनाए इस कानून को भी किसी कार्यकारी शक्ति से निरस्त किया गया है या सरकार इसे लेकर संसद में जाएगी यह कहना मुश्किल है। यह भी कि संसद में इस डील का कितना स्वागत होगा। उच्च तकनीकी क्षमता वाले देश फ्रांस और जापान जब परमाणु दुर्घटना को टाल नहीं सके, तो अमरीकी कंपनियों के इस दावे पर कैसे भरोसा कर लें कि ऐसा नहीं होगा। वैसे दुनिया में न्युक्लियर एनर्जी के कारोबार में गिरावट आ रही है। फ्रांस ने तय किया है कि वह परमाणु ऊर्जा के उत्पादन में भीषण कटौती करेगा, क्योंकि जोखिम के साथ-साथ लागत भी बहुत ज्यादा है।
बराक ओबामा के दौरे से भारत-अमेरिका के रिश्ते में थोड़ी और मजबूती आई है। न्युक्लियर डील पर वर्षों से जारी गतिरोध का दूर होना हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है। ओबामा की यात्रा के पहले यह उत्सुकता थी कि ओबामा भारत को कुछ ठोस देकर जाएंगे कि नहीं, पर उन्होंने निराश नहीं किया। गौरतलब है कि परमाणु समझौता दो मुद्दों को लेकर अटका हुआ था। एक, अमेरिका भारतीय नाभिकीय रिएक्टरों पर निगरानी चाहता था, जो भारत को मंजूर नहीं था। लेकिन, अब ओबामा ने अपने एग्जिक्युटिव पावर का इस्तेमाल करते हुए निगरानी की मांग छोड़ दी। दोनों देश इस मामले में कनाडा मॉडल का अनुसरण करेंगे, जिसकी भारत मांग कर रहा था। इसके तहत अब अमेरिकी अथॉरिटीज आईएईए द्वारा निगरानी से अलग खुद निगरानी की मांग नहीं करेगी। दूसरी अड़चन थी हादसे के बाद की स्थिति को लेकर। भारत चाहता था कि हादसे की सूरत में अमेरिकी न्यूक्लियर कंपनियां जवाबदेह ठहराई जाएं। इसके लिए भारत ने जवाबदेही कानून भी बना दिया था। लेकिन, अमेरिका को इस पर एतराज था। अब रास्ता ये खोजा गया है कि हादसे की सूरत में चार बीमा कंपनियां 750 करोड़ का इंश्योरेंस देंगी और बाकी बोझ भारत सरकार उठाएगी। ये बाधाएं दूर होने से परमाणु ऊर्जा के उत्पादन का काम शुरू हो सकेगा। जाहिर है पिछले कुछ समय से दोनों देशों में परस्पर बढ़ रहे विश्वास की वजह से ही यह डील अपने मुकाम पर पहुंची। चार महीने पहले जब नरेंद्र मोदी अमेरिका पहुंचे थे तो वहां उनका भव्य स्वागत हुआ था। भारत में परमाणु ट्रैकिंग पर अमेरिका झुका तो इसके बदले मोदी ने भी जलवायु परिवर्तन और कार्बन उत्सर्जन पर पारंपरिक रुख में थोड़ी नरमी दिखाई। निश्चय ही इस आपसी तालमेल का दोनों देशों को फायदा मिलेगा।
न्युक्लियर रिएक्टरों और मटीरिअल की निगरानी की अमेरिकी मांग पर विदेश सचिव ने कोई साफ जवाब नहीं दिया। गौरतलब है कि भारत इस मुद्दे पर आईएईए द्वारा निगरानी की मांग करता रहा है। अमेरिका की ओर से अमेरिकी रिएक्टर के लिए प्रयोग किए जाने वाले मटीरियल या उपकरण की सदैव के लिए निगरानी का अधिकार दिए जाने की मांग की जा रही थी, भले ही इन्हें किसी तीसरे देश से लाया गया हो। भारत अमेरिका की इस मांग का विरोध कर रहा था। भारत अमेरिका की इस शर्त का यह कहकर विरोध कर रहा था कि इससे देश की परमाणु संप्रभुता पर चोट पहुंचेगी। कांग्रेस ने मोदी सरकार से अमेरिका के साथ की गई न्युक्लियर और क्लाइमेंट चेंज डील पर सफाई मांगनी शुरू कर दी है।
कांग्रेस नेता और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद तथा देव दर्शन फिल्म्स प्रोडक्शन के चेयरमैन उपेन्द्र पाण्डेय ने कहा कि मोदी सरकार को साफ करना चाहिए कि क्या उनहोंने देश के हितों से समझौता तो नहीं किया है। असैन्य परमाणु और रक्षा समझौतों पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सराहना करते हुए एक प्रभावशाली भारतीय अमेरिकी सांसद ने आज कहा कि इन समझौतों से अमेरिकी कंपनियां अरबों डॉलर का कारोबार कर सकेंगी। भारत यात्रा पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रतिनिधिमंडल में शामिल ऐमी बेरा ने कहा कि आज जिस परमाणु समझौते की घोषणा हुई है उससे उन अमेरिकी कंपनियों के लिए अरबों डॉलर का कारोबार संभव होगा जो भारत में निर्माण और निवेश करना चाहती हैं।
राजीव रंजन तिवारी