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जिम्मेदार सरकार बना सकती है भारत को सुपरपॉवर

योग्यता, क्षमता, प्रतिभा जिसकी जितनी हो, उसके अनुसार उसे रोजगार के अवसर मिलने चाहिएं। आज गांवों से शहरों की ओर पलायन हो रहा है। युवाओं को गांव से शहर क्यों आना पड़ रहा है? क्या सरकार ने इस पर सोचा है? क्या गांवों में शिक्षा बेहतर नहीं दी जा सकती? क्या वहां स्वास्थ्य सुरक्षा नहीं दे सकते? रोजगार वहीं क्यों नहीं दिया जा सकता? गांवों या छोटे शहरों में ही यदि सड़कें, बिजली, पानी उपलब्ध हों तो शहरों की ओर कोई क्यों जाएगा?

मेरा मानना है कि स्वतन्त्र भारत में राजनीतिक नेताओं द्वारा किए गए वादे यदि आंशिक रूप से भी पूरे कर दिए गए होते तो आज भारत विश्व की सबसे सुपर इकॉनॉमिक पॉवर बन गया होता। इसीलिए मैं कहता हूं कि विश्वसनीयता का संकट एक बड़ी चुनौती है। हर राजनीतिक पार्टी को इसे चुनौती के रूप में स्वीकार करना चाहिए। सभी राजनीतिकपार्टियों को इस सच्चाई को भी समझना चाहिए कि राजनैतिक क्षेत्र में काम करने का उद्देश्य केवल सरकार बनाना नहीं होना चाहिए। राजनैतिक क्षेत्र में अगर काम कर रहे हैं तो जनता का समर्थन प्राप्त होने पर सरकार बनाएंगे, लेकिन अगर हम राजनीति कर रहे हैं तो केवल सरकार बनाने के लिए नहीं, बल्कि देश और समाज के निर्माण केलिए राजनीति कर रहे हैं। गुड गवर्नेंस का चाहे जितना भी बड़ा खाका या ऐक्शन प्लान क्यों न हो, उपरोक्त भाव के अभाव में वह साकार नहीं हो सकता।

सुशासन की सबसे पहली जरूरत जनता के मन में सेंस ऑफ सिक्युरिटी यानी सुरक्षा का भाव लाना है। सुरक्षा का भाव कानून एवं व्यवस्था के अर्थ में नहीं है। मैं व्यक्तिगत सुरक्षा की बात भी नहीं कर रहा हूं। सुरक्षा का भाव स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार या कई ऐसे मामले में होना चाहिए। कई ऐसे कारक हैं, जिनमें जनता आश्वस्त रहनी चाहिए कि सरकार अपने सुशासन के माध्यम से यह सुरक्षा प्रदान करेगी। लेकिन आजाद भारत में हुआ क्या है? चुनाव मैदान में उतरते हुए राजनैतिक पार्टियां सब को रोजगार देने, गरीबी दूर करने, बेरोजगारी का संकट समाप्त करने, सबको पर्याप्त सुरक्षा देने के वादे जनता से करती हैं। यानी जनता के मन में सेंस ऑफ सिक्युरिटी पैदा करने की पहली जिम्मेदारी सरकार की होती है….और जब पहला दायित्व भी सरकार नहीं निभा पाती है तो जनता के मन में आक्रोश होता है, असंतोष होता है।

एक और मेजर फैक्टर – महंगाई का है। ऐसा नहीं है कि महंगाई बढऩे का सिलसिला आजाद भारत में ही प्रारंभ हुआ है। महंगाई पहले भी बढ़ी है। 800 वर्ष पहले जब खिलजी वंश का शासन था, तो उस समय भी महंगाई बढ़ी थी और खिलजी वंश की हुकूमत ने प्राइस इस्टेबिलाइजेशन के लिए उचित कदम उठाए थे। सुशासन में प्रधानमंत्री को प्रिकॉशन (सावधानी) ले कर बढ़ती महंगाई को रोकना चाहिए। बढ़ती कीमतों को रोकने के लिए सरकार द्वारा प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए।

गरीब तबके के आज बहुत सारे लोग इलाज के आभाव में दम तोड़ रहे हैं। इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? क्या सरकार बनने के पांच साल के दौरान गरीब लोगों को इलाज मुहैया कराने का काम पूरा नहीं हो सकता? सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह गरीब व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए उसका प्रीमियम पूरी करती रहे। भाजपा शासित राज्यों में यह काम हो रहा है। चुनाव जीतने के लिए रोजगार भत्ता देने की घोषणा तो की जाती है, लेकिन धरातल पर काम नहीं होता। भारत का नौजवान स्वाभिमानी है। वह भत्ता या बख्शिश नहीं चाहता, बल्कि वह स्वाभिमान के साथ जीना चाहता है।

योग्यता, क्षमता, प्रतिभा जिसकी जितनी हो, उसके अनुसार उसे रोजगार के अवसर मिलने चाहिए। आज गांवों से शहरों की ओर पलायन हो रहा है। युवाओं को गांव से शहर क्यों आना पड़ रहा है? क्या सरकार ने इस पर सोचा है? क्या गांवों में शिक्षा बेहतर नहीं दी जा सकती? क्या वहां स्वास्थ्य सुरक्षा नहीं दे सकते? रोजगार वहीं क्यों नहीं दिया जा सकता? गांवों या छोटे शहरों में ही यदि सड़कें, बिजली, पानी उपलब्ध हों तो शहरों की ओर कोई क्यों जाएगा? महात्मा गांधी ग्राम स्वराज्य की बात करते थे। आज भी भारत गांवों का देश है। जितनी भी बुनियादी सुविधाएं हैं, उन्हें गांवों में दिलाना होगा। भारत का विकास करने के लिए ऐसा करना आवश्यक है।

निर्माण क्षेत्र की हालत देखिए, उसमें सभी उद्योग आ जाएंगे। इस क्षेत्र को बढ़ावा देने से ही रोजगार बढ़ाने का वह लक्ष्य प्राप्त हो सकता है। आज जीडीपी में इसका 13 से 14 फीसदी तक का योगदान है। इसे और भी अधिक बढ़ाया जा सकता है? निर्माण क्षेत्र में गिरावट होने के कारण चीन खराब गुणवत्ता वाली वस्तुएं निर्यात कर रहा है। भारतीयों के पास इस क्षेत्र में वह दक्षता हासिल है और उस में वे पूरी तरह से खरे भी उतरेंगे। यही कारण है कि भारत में निर्मित वस्तुओं को दुनिया में महत्ता दी जाती है। इन क्षेत्रों को जितना प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, उतना नहीं किया गया है। आज हमारा आयात बढ़ता जा रहा है, निर्यात कम होता जा रहा है। निर्माण क्षेत्र की हालत खराब होने के यही कारण हैं। परिणामत: चालू खाता घाटा बढ़ रहा है। विदेशी कर्जा लेकर काम चलाएंगे तो डॉलर के मुकाबले रूपया गिरेगा ही। यही हो रहा है।

हालांकि, हमारे प्रधानमंत्री अर्थशास्त्री हैं। उन्होंने संसद में कहा था कि भाजपा के लोग हाउस नहीं चलने देते, इस कारण भारत में विदेशी निवेश नहीं हो सकता है। इस कारण भारत की आर्थिक स्थिति खराब है। आप बताइए मित्रों, क्या भारत में ह्यूमेन रिसोर्सेज या नेशनल रिसोर्सेज की कमी है? क्यों यह कहा जाता है कि भारत विदेशी पूंजी के बिना खड़ा नहीं हो सकता? मैं पूछना चाहता हूं कि घरेलू निवेशक भारत छोड़कर विदेश क्यों जा रहे हैं? इसका कोई जवाब नहीं है। जनता की आंखों में धूल झोंक कर थोड़े समय के लिए सरकार बनाई जा सकती है, देश नहीं।

भ्रष्टाचार का मुद्दा है। किसी भी विभाग चले जाइए, लोग कहते हैं कि जब तक दो-चार रूपए नहीं रखते, तब तक फाइल मूव करती ही नहीं है। कितने लाखों-करोड़ों के भ्रष्टाचार हुए हैं। यह मैं नहीं, सीएजी कह रहा है। क्या भ्रष्टाचार रोकने के लिए कदम नहीं उठाने चाहिए? केवल लोकपाल पास होने से भ्रष्टाचार पर पूरी तरह से लगाम लग जाएगी, ऐसा नहीं है। भ्रष्टाचार की सीमा देखिए, मंत्रालय से फाइलें ही गायब हो रही हैं। लोकपाल के साथ कई बिल पेंडिंग हैं। केवल कानूनों के माध्यम से भ्रष्टाचार नहीं रोका जा सकता।

दूसरा बिंदू है भारतवासियों की मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध होना। नेताओं को भी सोर्स ऑफ इंस्पेरेशन (प्रेरणास्रोत) के रूप में काम करना होगा। शिक्षा प्रणाली, न्यायिक प्रणाली, आर्थिक प्रणाली में भी बदलाव लाना होगा। इन विषयों पर विचार होना चाहिए, जो नहीं हो रहा है। भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर अंकुश लगाने के लिए देश की व्यवस्था में बदलाव लाना होगा। इसके लिए सबसे जरूरी मूल्यों के प्रति कमिटमेंट रखना होगा।

दोस्तों, पाकिस्तान की सेना के जवान यहां आते हैं और हमारे सेना के जवानों की हत्या करते हैं। सेना के जवान का सिर कुचल डालते हैं। सेना के जवान का सिर धड़ से अलग कर अपने साथ ले जाते हैं। सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है? सरकार की क्या जिम्मेदारी बनती है? भारत के सेना के जवानों के शौर्य और पराक्रम पर मुझे संदेह नहीं है। बल्कि मैं तो यह कहता हूं कि एक बार खुले हाथ हमारे जवानों को छोड़ दिया जाए, तो हमारे सेना के जवानों के शौर्य और पराक्रम को देख लीजिए। चीन कहता है कि अरूणाचल प्रदेश भारत का नहीं, चीन का हिस्सा है। जम्मू-कश्मीर के बारे में कहते हैं कि स्टेप्ल्ड वीजा जारी करेंगे, अरूणाचल प्रदेश के लोगों को वीजा की कोई जरूरत नहीं है। हम कुछ नहीं बोलते? पड़ोसी दशों के साथ हमारे रिश्ते बेहतर होने चाहिए, लेकिन इसके लिए कूटनीतिक कुशलता चाहिए। 2003 में अटल जी जब चीन गए थे, तो वहां से तोहफा लेकर आए थे। जो चीन सिक्किम पर दावा करता था कि उसका है, उसी दिन से चीन कहने लगा कि अब वह सिक्किम पर दावा नहीं करेगा। यह होती है – डिप्लोमेटिक स्किल।

मैं कहता हूं कि भारत में केवल सुपर इकॉनॉमिक पॉवर ही नहीं, बल्कि स्पिरिचुअल पॉवर का विकास भी हो। यदि भारत को जगत-गुरू बनना है, तो आर्थिक शक्ति के साथ आध्यात्मिक शक्ति का विकास भी करना होगा।

(दिल्ली विश्वविद्यालय में दिए गए भाषण के मुख्य अंशों पर आधारित)

राजनाथ सिंह

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