हाल ही में सम्पन्न हुआ चुनाव एक ऐसा चुनाव था, जिसमें रिकॉर्ड नम्बरों में राजनीतिज्ञों ने दल-बदली की। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह रही कि उस चुनाव में वे नेता ही सफल हुए, जिन्होंने भाजपा का दामन थामा था। 16वीं लोकसभा में पहुंचने वाले बड़े दल-बदलुओं में ओमप्रकाश यादव, सुशील कुमार सिंह, बृज भूषण शरण सिंह, जगदम्बिका पाल, धर्मवीर सिंह, अजय निषाद, संतोष कुमार, महबूब अली कैसर, अशोक कुमार दोहरे, विद्युत बरन महतो और हिना गावित जैसे नाम शामिल हैं।
केवल उत्तर प्रदेश में, जो किसी भी पार्टी के समीकरण बनाने या बिखेरने में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, भाजपा ने 19 दल-बदलुओं को शामिल किया, वहीं मुलायम सिंह ने 15, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी ने 7-7 दल-बदलुओं को शामिल किया। चुनावों से पहले अजीत सिंह ने 3 दल-बदलुओं को अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोक दल में शामिल किया था। जहां अमर सिंह और जयाप्रदा जैसे बड़े नामों को भी हार का मुंह देखना पड़ा, वहीं अधिकतर दल-बदलू जिन्होंने सपा, बसपा या रालोद का सहारा लिया था, उन्हें धूल चाटनी पड़ी। बिहार में जद (यू) ने 40 संसदीय सीटों में से 38 पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, जिसमें 13 दल-बदलू थे। इन सब में से केवल संतोष कुमार ही ऐसे थे, जो भाजपा छोड़ जद (यू) में शामिल हुए थे और चुनाव जीते। भाजपा ने भी अपनी 30 में से 9 सीटों पर अपनी-अपनी पार्टी छोड़ कर आए नेताओं को खड़ा किया, जिनमें से 5 ने जीत दर्ज की।
इसी तरह हरियाणा में भी 3 नेता भाजपा में शामिल हुए, जिनमें से राव इंद्रजीत सिंह ने गुडग़ांव से और रमेश चन्दर ने सोनीपत संसदीय सीट से जीत हासिल की। राजस्थान में भी भाजपा में 3 नेता शामिल हुए। विवादास्पद बाड़मेर सीट को भाजपा ने बागी जसवंत सिंह से लेकर कर्नल सोनाराम चौधरी को दे दी और उन्होंने वहां से जीत हासिल की। बिहार में राजद से भाजपा में आए रामकृपाल यादव ने लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती को हराकर पाटलीपुत्र सीट पर जीत दर्ज की। जद (यू) से निकाले गए सुशील कुमार सिंह ने भी भाजपा से औरंगाबाद सीट पर जीत दर्ज की।
चुनावों के बाद भाजपा को एक बार फि र से क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दलों से बड़ी संख्या में आने वाले नेताओं की भीड़ से जूझना पड़ रहा है। ओडिशा और पश्चिम बंगाल में तो दूसरी पार्टियों के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में भाजपा में शामिल हो रहे हैं। ओडिशा में खराब प्रदर्शन के बावजूद समाज के हर तबके के लोग भाजपा में शामिल होने की होड़ लगाए हुए हैं।
पश्चिम बंगाल में तो जैसे बाढ़ आई हुई है। कांग्रेस, तृणमूल और सीपीएम के लगभग 50 हजार राजनीतिक कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हो चुके हैं। खासकर जंगलमहल क्षेत्र में तृणमूल सरकार से मोहभंग के कारण पार्टी में शामिल होने की होड़ लगी हुई है। राज्य के सीमावर्ती इलाकों में बढ़ती बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या गंभीर है। मोदी ने अपने चुनावी अभियान के दौरान लोगों की इस दुखती रग पर हाथ रख दिया था। ममता ने इस मुद्दे पर मोदी को आड़े हाथों तो लिया था, लेकिन इसने ममता की अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की नीति को भी उजागर कर दिया।
जंगलमहल के लोधाशुली, गोपीबल्लवपुर, नयाग्राम मोहनपुर में लगातार बैठक करने वाले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राहुल सिन्हा का मानना है कि लोग भाजपा में इस उम्मीद से शामिल हो रहे हैं कि पार्टी तृणमूल कांग्रेस के आतंक को राज्य से खत्म कर पाएगी। झारखण्ड पार्टी के भी कुछ कार्यकर्ता पार्टी में शामिल हो चुके हैं। हाथ आए इस अवसर को देखते हुए ही पार्टी हाईकमान ने बलवीर पुंज के नेतृत्व में एक टीम बीरभूम जिले के इलामबाजार इलाके में भेजी, जहां पार्टी के अल्पसंख्यक नेता रहीम शेख की 7 जून को तृणमूल के गुंडों द्वारा हत्या कर दी गई थी।
कस्बा संतोषपुर, गरिया और सलीमपुर जैसे कोलकाता के उपनगरों में कुछ लाख मतदाता हैं। देश के विभाजन के बाद से इन इलाकों में मध्यम वर्ग के बंगाली हिन्दू रहते आए हैं और उन्होंने बीते दशक से पहले कभी भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा नहीं देखी थी। लेकिन अब विभिन्न मुहल्लों में ये शाखाएं दिखने लगी हैं। पिछले 30 सालों से कम्युनिस्टों के गढ़ रहे इन इलाकों में संघ के उभार ने बहुत लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है। संघ का उभरना बहुत सारे सवाल खड़े करता है। पहला तो यह कि संघ का उभरना कहीं सत्तारूढ़ पार्टी के उभरने से जुड़ा तो नहीं है? दूसरा सवाल यह भी उठता है कि क्या संघ के उभरने से भाजपा को राज्य में अपने मतदाताओं को संगठित करने में मदद मिलेगी?
तृणमूल कांग्रेस के शुरुआती दौर के सदस्य और पार्टी अध्यक्ष ममता बनर्जी के काफी करीबी माने जाने वाले प्रदीप सिंह कुछ महीने पहले ही संघ और भाजपा में शामिल हुए हैं। इसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि अफजल गुरु की फांसी के विरोध में मुसलमानों द्वारा प्रदर्शन करने पर वह काफ ी व्यथित हो गए थे। ऐतिहासिक रूप से राष्ट्रीय हिन्दू संगठनों को बंगाल में समर्थन मिलता रहा है। रामजन्मभूमि आंदोलन की लहर पर सवार भाजपा को 1991 के लोकसभा चुनाव में वहां 13 प्रतिशत मत मिले थे। वहीं 2009 के चुनावों में पार्टी को सिर्फ 6.15 प्रतिशत मतों से संतोष करना पड़ा। इस बार नरेंद्र मोदी लहर पर सवार होकर पार्टी ने अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए राज्य में 17 प्रतिशत मतों पर कब्जा किया। पश्चिम बंगाल की राजनीति में पिछले पायदान पर नजर आने वाली भाजपा ने इन चुनावों में शानदार प्रदर्शन करते हुए राज्य कीराजनीति में बदलाव की नींव डाल दी है। पार्टी ने दार्जिलिंग और आसनसोल जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर जीत हासिल करने के साथ ही उसने दक्षिणी कोलकाता, उत्तरी कोलकाता और मालदा दक्षिण में दूसरा स्थान प्राप्त किया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर भाजपा यह गति बनाए रखती है तो पिछले चार दशकों से चले आ रहे राजनीतिक समीकरणों को वह बदल सकती है। राज्य के अगले विधानसभा चुनावों में कम्युनिस्ट पार्टी नाम भर को रह जाएगी और असली मुकाबला भाजपा और ममता के बीच ही होना है।