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वाग्देवी प्रतिमा यहाँ 1875 में हुई खुदाई में निकली थी। 1880 में भोपाल का पॉलिटिकल एजेंट मेजर किनकेड इसे अपने साथ लंदन ले गया।
1909 में धार रियासत द्वारा 1904 के एन्शिएंट मोन्यूमेंट एक्ट को लागू कर धार दरबार के गजट जिल्द में भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया। बाद में भोजशाला को पुरातत्व विभाग के अधीन कर दिया गया। धार स्टेट ने ही 1935 में परिसर में नमाज पढऩे की अनुमति दी थी। स्टेट दरबार के दीवान नाडकर ने तब भोजशाला को कमाल मौला की मस्जिद बताते हुए को शुक्रवार को जुमे की नमाज अदा करने की अनुमति वाला आदेश जारी किया था। धार स्थित भोजशाला पर 1995 में मामूली विवाद हुआ। मंगलवार को पूजा और शुक्रवार को नमाज पढऩे की अनुमति दी गई।12 मई 1997 को कलेक्टर ने भोजशाला में आम लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया। मंगलवार की पूजा रोक दी गई। हिन्दुओं को बसंत पंचमी पर और मुसलमानों को शुक्रवार को 1 से 3 बजे तक नमाज पढने की अनुमति दी गई। प्रतिबंध 31 जुलाई 1997 तक रहा।6 फरवरी 1998 को केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने आगामी आदेश तक प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया। इसी प्रकार 2003 में मंगलवार को फिर से पूजा करने की अनुमति दी गई। बगैर फूल.माला के पूजा करने के लिए कहा गया। पर्यटकों के लिए भी भोजशाला को खोला गया। 18 फरवरी 2003 को भोजशाला परिसर में सांप्रदायिक तनाव के बाद हिंसा फैली। पूरे शहर में दंगा हुआ। राज्य में कांग्रेस और केंद्र में भाजपा सरकार थी। केंद्र सरकार ने तीन सांसदों की कमेटी बनाकर जांच कराई। कमेटी में तत्कालीन सांसद शिवराज सिंहए वर्तमान मुख्यमंत्रीए मध्यप्रदेशए एसएस अहलूवालिया और बलबीर पुंज शामिल थे। |
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भोपाल के नवाब मो0 सिद्दीक हसन खान द्वारा लिखी गई पुस्तक हजीरात-अल-क्युदी के पृष्ठ 385 पर भोपाल का नाम भोजपाल होना और इसे राजा भोज द्वार बसाये जाने की पुष्टि की गई है। इसी प्रकार 1973 में आक्सफोर्ड विश्वविध्यालय द्वारा सईदुल्लाह खान को दी गई पीएचडी में भी इसकी पुष्टि की गई है। सरकारें आती है, जाती है, पर कोई भी सच समझने को तैयार नहीं है।
भोपाल नाम भोजपाल का अपभ्रंश है। ऐसा नवाब सिद्दीक हसन खान अपनी किताब में लिख गये हैं। इसके बाद कोई शोध नहीं हुआ और जब 2013 में राजा भोज के जमाने के नगर नियोजन पर चर्चा करने वास्तुविद बैठे तो पता चला कि बंद दरवाजों के इस शहर की सारी परिकल्पना तो राजा भोज ने ही की थीए समरांगणसूत्रधार में। बाद में इसे कुछ और फिर कुछ और नाम दे दिए गये। भोपाल शहर को मैने दरवाजों के शहर के रूप में देखा है जुमेराती इतवारा बुधवारा पीरगेट इमामीगेट सुल्तानिया इन्फेंट्री गेट जैसे की दरवाजे मेरे सामने जमींदोज़ किये गये। इनके बनने और टूटने को लेकर विवाद हो सकता है पर समरांगण सूत्रधार के सूत्रों को साथ रखकर देखा जाये तो कोई भी आसानी से यह कह सकता है कि नवाबों ने इस नक्शे को ही आधार बनाया होगा। आज भी पुराने भोपाल की कुछ सडकों और चौराहों को अध्धयन करें तो उनका मेल समरांगण सूत्रधार से होता है। राजा भोज किसी अमर वास्तु शिल्प को तो छोड़ नहीं गए जिसे उस काल की धरोहर कहा जा सकेए लेकिन बड़ा तालाब और उससे जुडी जल प्रदाय प्रणाली उनके सफल नगर नियोजक होने की बात प्रमाणित करते है। इस शहर की रचना और इसके मध्य में ख्चौक बाजार, में सभामंडपम नामक संस्कृत पाठशाला होने और वहां संस्कृत के अध्येताओं के रहने की बात का जरुर प्रमाण मिलता है। सुल्तान जहाँ बेगम द्वारा 1918 में लिखी गई पुस्तक ह्यातेकुदुसी में इसका स्पष्ट उल्लेख है। दरवाजों से आज़ाद हुए भोपाल ने तात्याटोपे नगर के नाम से नया भोपाल बनाया। इसने विस्तार में पुराने भोपाल को जरुर पीछे कर दियाए परन्तु यह बड़ा पर अजीब तरीके से बना है। भोपाल जो कभी ताल तलैयों की नगरी कहा जाता था अब इन्वेस्टर पेराडाइज है। |
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राकेश दूबे | ||||
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