गठबंधन के द्वितीय कार्यकाल और साल भर में दिखाने को बहुत कम होने के कारण कॉन्ग्रेस ने यूपी, के पहले और दूसरे कार्यकाल को एकल रुप में पैकेजिंग करने की शुरूआत कर दी है ताकि उपलब्धियों के नाम पर दोनों कार्यकाल के दौरान किए गए कामों को दिखाकर एनडीए से तुलना की जा सके। | |||
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रिपोर्ट कार्ड प्रस्तुत करेंगे। वैसे राजनीतिक गलियारों में कयामत नहीं आई है, लेकिन वातावरण में उदासी जरूर है। अगले आम चुनाव समय पर अप्रैल-मई 2014 में ही हुए तो भी उन चुनावों से पहले बहुत अधिक समय नहीं बचा है। लगता है कि नैतिकता और राजनैतिक अविश्वसनीयता का गंभीर संकट झेल रही मनमोहन सिंह सरकार को समझ नहीं आ रहा कि इन चुनावों से पहले एक साल का जो थोड़ा सा समय बचा है, उसमें वह इन हालातों से कैसे निपट सकेगी।2009 में दूसरी बार सत्ता में आने के बाद से यूपीए-2 की अब तक की यही कहानी रही है। पार्टी ने पिछले चुनाव में नरेगा (राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून, जिस के आगे बाद में महात्मा गांधी का नाम जोड़ कर मनरेगा कर दिया गया), कृषि ऋण माफी और सूचना का अधिकार जैसे जनोन्मुखी और गरीबोन्मुखी एजेंडे के आधार पर कुल 206 सीटें जीती थीं, जो 2004 में जीतीं गईं कुल सीटों के मुकाबले 145 सीटें ज्यादा थीं। इसके अतिरिक्त दुर्जेय त्रिमूर्ति के रूप में मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और राहुल गांधी को पेश किया गया। इनमें मनमोहन ंिसंह तो मध्यम वर्ग के शुभंकर थे जबकि सोनिया गांधी को वंचितों एवं गरीबों की मसीहा के रूप में प्रचारित किया गया। अमेठी के सांसद राहुल गांधी देश के युवा वर्ग के आइकॉन बने। यह एक तरह का मादक मिश्रण था, जिसने मजबूरी में गठबंधन करने वाली पार्टी को सुनहरे भविष्य का स्वप्न दिखाया कि वह एक दिन अपने बलबूते पर केन्द्र में सरकार का गठन कर सकती है।पस्त और चोटिल लेकिन कुछ ही दिनों में सारा परिदृश्य बदल गया। 2009 में प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने के दो महीनों के भीतर ही वह पाकिस्तान के साथ एक संयुक्तवक्तव्य पर हस्ताक्षर करने के लिए विपक्ष का निशाना बन गए जब उन्होंने पाकिस्तान के साथ समग्र वार्ता प्रक्रिया में आतंकवाद की शर्त को हटा दिया और बयान में बलूचिस्तान का जिक्रकर दिया। उसके बाद तो यह एक सिलसिला ही बन गया। |
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वापस ले लिया। समर्थन वापसी के कारण मंत्रियों के इस्तीफों के अलावा यूपीए-2 के कई मंत्रियों को अनुशुचिता और भ्रष्टाचार में संलिप्तता के कारण भी इस्तीफा देना पड़ा। डीएमके के एण्राजा और दायानिधि मारन सहित कांग्रेस के शशि थरुर, वीरभद्र सिंह और रेलगेट एवं कोलगेट कांड जैसे ताजा घटनाक्रम में अश्विनी कुमार और पवन कुमार बंसल की संलिप्तता उजागर होने पर उन्हें तुरंत अपना सामान समेटना पड़ा। जनलोकपाल बिल को लेकर अण्णा हजारे और अरविंद केजरीवाल का आंदोलन, दिल्ली के पैरामेडिकल कॉलेज के छात्रा के साथ वहशियाना सामूहिक दुष्कर्म के खिलाफ आम लोगों का प्रदर्शन और आंध्र प्रदेश में तेलंगाना की मांग को लेकर प्रदर्शनकारियों ने यूपीए-2 की मुश्किलें और भी बढ़ा दीं। यहां तक कि क्रेडिट रेटिंग में भारत की गिरावट के साथ-साथ सरकार ने उच्च विकास दर की रफ्तार को भी खो दिया, जो सरकार की प्रमुख उपलब्धि के रुप में बताया जाता था। मामला तब और भी बदतर हो गया, जब सरकार के प्रमुख मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बीच दरार पैदा होने की आंतरिक खबरें आयीं जिसे पार्टी ने खंडन करने से पूर्व विपक्ष की खुशियों तक फोड़ा बनने दिया। ताजा उदाहरण अश्विनी कुमार और पवन कुमार बंसल के त्यागपत्रों का है। | |||
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‘अंडरएचीवर’ के रुप में प्रचारित कर दिया। पार्टी के अंदर केन्द्र में नेतृत्व परिवर्तन की अफवाहों ने उस व्यक्ति की छवि और विश्वसनीयता को और गिरा दिया, जिसे सोनिया गांधी ने शीर्ष पद के लिए चुना था।दिखावे में छोटा? तो क्या सत्ता के पांचवें साल में कदम रख रही यूपीए-2 सरकार के पास ऐसा कुछ भी नहीं है, जिस पर वह अपनी पीठ थपथपा सके? संसद और विधानसभा में एक-तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित करने वाले महिला आरक्षण बिल को राज्यसभा में 9 मार्च 2010 को पारित कराकर सरकार ने उसके लिए आगे का रास्ता को सुनिश्चित करने की कोशिश की। सरकार इसे लोकसभा में पारित कराने में कठिनाई महसूस कर रही थी जहां विपक्षी दल दलितोंए पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के लिए सब-कोटा की मांग कर रहे थे। सब-कोटा की मांग को लेकर इस बिल के पेश करने पर लोकसभा में जमकर विरोध हुआ था। एक तरफ सरकार ने अगस्त 2009 में मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा को पारित कराने में सफलता पाई, तो दूसरी तरफ मनरेगा के कार्यक्षेत्र को बढ़ाते हुए सरकारी योजनाओं के लाभान्वितों को समयानुसार और तेज से भुगतान के लिए ‘डायरेक्ट कैश ट्रांसफर्य स्कीम को भी लागू किया।मल्टी-ब्रांड में एफ.डी.आई. को छोड़ कर अब तक सरकार अन्य किसी प्रमुख या सुधार संबंधी बिल को संसद में पेश करने में सफल नहीं हो पाई है। इसमें बीमा और पेंशन क्षेत्र में एफ.डी.आई. भूमि अधिग्रहण बिल सहित 2009 के आम चुनाव में गेम चेंजर की भूमिका निभाने वाले मनरेगा की तरह ही खाद्य सुरक्षा बिल भी शामिल हैं, जिसके तहत अनुदानित खाद्य अनाजों का सीधा लाभ 75 प्रतिशत ग्रामीण और 50 प्रतिशत शहरी जनता को मिलना है। अब यह जुलाई-अगस्त में होने वाले संसद के मानसून सत्र तक के लिए टल गया है। यह बिल बंसल और अश्विनी प्रकरण में विपक्ष द्वारा प्रधानमंत्री से इस्तीफे की मांग की कालिख को धोने में सहायक हो सकता है। मानसून सत्र में भी यदि दोनों सदन फिरभी ठप रहते हैं तो सरकार के पास इसके लिए अध्यादेश जारी करने का विकल्प है, जिसे अगले छह महीनों तक संसद के अनुमोदन की जरूरत होगी। गठबंधन का पैकेजिंग इसकी शुरूआत मल्टी-मीडिया अभियान के जरिए शिक्षा, सड़क, दूरसंचार, मध्याह्न भोजन सहित समेकित विकास की अन्य योजनाओं एवं सरकार में भागीदारी के तौर पर भारत निर्माण के रूप में हो सकती है। इन योजनाओं को मौन क्रांति और दूर-दराज क्षेत्रों में ग्रामीण लोगों के जीवन में सुधार करने वाले कार्यों के रूप में प्रचारित किया जा सकता है। यह संयोग हो सकता है कि यूपीए की वर्षगांठ के साथ ‘भारत की कहानी की झलकियां्य विज्ञापन की टैगलाइन ‘मीलों हम आ गए, मीलों हमें जाना है्य चतुराई से यह संदेश देता है कि यूपीए-3 ही ‘भारत के विकास की कहानी्य को आगे ले जा सकता है। मनीष तिवारी ने कहा -‘यह यूपीए की नौंवी वर्षगांठ है और हम सब मिलकर यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि पिछले नौ सालों में चीजें कैसे बदली हैं। पांच मापदंडों – राजनीतिक स्थायित्व, सामाजिक एकजुटता, आंतरिक सुरक्षा, आर्थिक विकास और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को आधार बनाकर यूपीए अपने शासन की खूबियों को लोगों तक पहुंचाएगा।्य बीजेपी की नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के लिए 2004 में घातक सिद्ध हुए ‘इंडिया शाइनिंग्य अभियान से इसकी किसी भी समरूपता से उन्होंने इंकार किया है। जमीनी स्तर पर कांग्रेस के कार्यकर्ता उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में जीत और विपक्षी दल भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए में बिखराव के बावजूद चुनाव में जीत को लेकर शंकित नजर आ रहे हैं। अब जबकि साल भर से भी कम समय बचा हैए पार्टी और सरकार बुरी तरह धूमिल पड़ चुकी अपनी छवि को चमकाने में लग गयी है। हालांकि यह एक कठिन काम है, फिर भी इस वैतरणी को पार लगाने में गांधी परिवार, ग्रामीण भारत का समर्थन और विपक्ष में बिखराव से उन्हें उम्मीद है कि ये परिस्थितियां उनकी मदद करेंगी और 2014 में यूपीए की सरकार का गठन होगा। (सरोज नागी दिल्ली में राजनीतिक विश्लेषक हैं) |
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सरोज नागी