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अमेरिका के निवासी हिन्दी कवि मोहन वर्मा के कविता संकलन का शीर्षक है: ”बूंद से नदी तक”।गीता पर बहुत साहित्य लिखा गया है। उसकी तरह तरह से व्याख्या की गई है। ज्ञानेश्वर, लोकमान्य तिलक, अरविंद, महात्मा गांधी और विनोबा भावे आदि के भाष्य सर्व विदित है। अंग्रेजों के समय में जिस व्यक्ति के पास गीता मिलती थी, उसे क्रांतिकारी मान कर गिरफ्तार कर लिया जाता था। अध्यात्म, कर्मठ जीवन, असहयोग, क्रान्तिकारिता और सर्वोदय आदि अनेक व्याख्याओं के बाद अमेरिका में नए हिन्दी कवि मोहन वर्मा गीता का भाष्य आज के जीवन की विषमताओं के संदर्भ में करते हैं। कवि के अनुसार फसल किसान पैदा करे, पर सब ले जाए जमींदार, फिर किसान भूखमरी से आत्महत्या करे। बच्चों से मजदूरी कराई जाए और हम गीता पाठ करते रहें। हमारे चुने शासक हमें रौंदकर निकल जाएं और प्रजा आत्मा की अमरता का जाप करे। अनेक आयामों और अनेक अर्थ छवियों से संपन्न ”गीता पाठ” कविता मोहन वर्मा की प्रतिनिधि रचना है। इसे इनकी पोस्टर कविता कहा जा सकता है। संकलन की पहली रचना 1956 में लिखी गई है, जिसमें कवि सूर्य की तुलना विशाल मकड़ी से करता है। सुनहरी किरणें उसे ”राल” नजर आती है। जीवन की जटिलताओं और विषमताओं के प्रति कवि प्रारंभ से ही जागरूक है। 1958 में लिखी गई कविता में परखनली से जन्मे शिशु की मनोव्यथा मार्मिक है। 10वर्ष बाद लिखी गई कविता में-”जीवन मिल का धुआं है, जो उन्नत मुख तो है, पर अगले क्षण कहां जाएगा, दाएं या बाएं मुड़ेगा, यह किसी को नहीं मालूम।
जीवन की जटिलताओं के अलावा प्रकृति पर भी कवि ने खूब लिखा है। मोहन वर्मा को विश्व घोंसले में बैठा चिडिय़ा का चह चहाता बच्चा नजर आता है। नैनीताल में लिखी गई कविता में कुमाऊं काला पहाड़ है, झरने जख्म हैं, रिसते पानी का लहू लगा है बहने। इसीलिए कवि को अस्तित्व ज्वालामुखी सा लगता है। ”पहाड़ों पर सांप नहीं होते, शायद पहाड़ स्वयं सांप होते हैं” जैसी पंक्तियां पढ़ कर अज्ञेय की ”सांप” कविता याद आना स्वाभाविक है। प्रकृति कोमल, सुन्दर और अभिराम ही नहीं है, वह भयानक भी है, यह चेतना कवि को आधुनिक जल जीवन में स्वीकार्य बनाती है। ”विश्व की विनाश लीला पर कवि की टिप्पणी है-ऊंगलियों के बीच दावे सिगरेट या प्रक्षेपणास्त्र और माचिस सा जेब में ठूंसे हुए परमाणु उद्जन बम” मनुष्य की यह आत्मघाती युद्ध पिपासा वियतनाम, बांग्लादेश और मुजीबुर्रहमान आदि पर लिखी गई कविताओं में प्रकट हुई है। कवि अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता इंदिरा गांधी, जयप्रकाश नारायण, आपातकाल और ओबामा की विजय पर लिखी गई कविताओं में उजागर करता है। मोहन वर्मा ने गणित पर शोध किया है। वह विज्ञान के छात्र रहे हैं। ”बिन्दु पथ” कविता में वह ”तुम एक मूल केन्द्र मैं-एक चल बिन्दु समय किसी संख्या ”क” सा हांकता मुझे हैं…. ” इसी तरह वैज्ञानिक स्वयं कहां उफनता है। आकर्षण है किसी का जो उसमें उछलता है चांद स्वयं सम्मोहन तो नहीं सूर्य की दीप्ति उधार ले उजलता है। सूर्य मात्र वाष्पपिण्ड है लगातार जलता है। मोहन वर्मा जीवन और जगत से कटे हुए कवि नहीं हैं। प्रकृति और मनुष्य उनकी चिन्ताओं के केन्द्र में सहज रूप से आते हैं। जीवन की विरूपता उन्हें केवल सुन्दरता का पुजारी होने से रोकती है। अपनी कविताओं को वह आत्म मुग्ध दृष्टि से नहीं देखते। उन्हें वह जीवन और जगत का अनुवाद मानते हैं। कविता के बारे में उनकी राय है–”मैंने जब भी कोई कविता लिखी, लगा, जैसे किसी जीवित पुस्तक से इसे चुराया है।” जीवन का यह अनुकरण ही उनकी रचना को मानवीय गरिमा देता है। |
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