कांगे्रस पार्टी के एक प्रवक्ता ने ‘इंडियन मुजाहिद्दीन’ की उत्पत्ति और उसके अस्तित्व को अभूतपूर्व तरीके से तर्कसंगत ठहराया है। इंडियन मुजाहिद्दीन एक आंतकवादी संगठन है। इसे भारत में गैर – कानूनी गतिविधियों (निरोधक) कानून के अंतर्गत ‘संगठन’ कहा गया है। यूपीए सरकार ने इस पर लागू प्रतिबंध जारी रखा है। अमरीकी विदेश विभाग ने इसे विदेशी आंतकवादी संगठनों की सूची में शामिल किया है। ब्रिटेन ने इस पर प्रतिबंध लगाया है। गंभीर राजनीतिक पर्यवेक्षकों को इस बात पर ताज्जुब है कि कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता भारत में मुजाहिद्दीन की उत्पत्ति को 2002 के गुजरात दंगों की प्रतिक्रिया स्वरूप जन्मे एक संगठन के रूप में क्यों तर्कसगंत ठहरा रहे हैं।
यूपीए अपने अस्तित्व के दसवें साल में है। आम चुनाव जैसे – जैसे नजदीक आ रहे हैं, यूपीय को सत्ता विरोधी माहौल से जूझना पड़ रहा है। नेतृत्व की विफलता किसी से छिपी नहीं है। नेतृत्व अक्षम दिखाई दे रहा है। शासन पूरी तरह आयोग्य साबित हुआ है। सरकार के पास इस बात की समझ नहीं रह गई है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर कैसे लाया जाए। यूपीए ने भ्रष्टाचार को अपनी नीति का नया दिशासूचक सिद्धांत बनाया है। यूपीए का दस का कुशासन दिखाता है कि उसने किस प्रकार धर्मनिपेक्षता को तोड़ा-मरोड़ा है। यूपीय शासन के खराब शासन के बाद आगामी आम चुनाव की कार्यसूची में एक प्रभावशाली और स्वच्छ सरकार का मुद्दा प्रमुखता से छाया रहेगा।
कांग्रेस की पंरपरागत रणनीति रही है कि जब भी वह शासन के मामले में विफल रहती है, तो वह ब्रह्मास्त्र यानी पार्टी के पहने परिवार के कथित करिश्मे का इस्तेमाल करती है। दुर्भाग्यवश करिश्मा भी अब बेअसर दिखाई दे रहा है। यूपीए का निवर्तमान नेतृत्व कथित तौर पर निक्कमा है ।
शासन के संकट और नेतृत्व के अभाव का सामना करने के साथ यूपीए का मुख्य मुद्दों से भटकना उसकी हताशा प्रकट करता है। किसी भी सूरत में यूपीए को धर्मनिपेक्षता को तोडऩे-मरोडऩे की इजाजत नहीं दी जा सकती। इसलिए यूपीए के पास एक ही विकल्प बचा है देश की राजनीति का साम्प्रदायिकरण किया जाए और चुनाव का एजेंडा बदल दिया जाए। जो लोग यूपीए को सत्ता उखाड फेंकना चाहते हैं, उन्हें समझना चाहिए कि उन्हें शासन के मुद्दों पर अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए, जिनसे यूपीए बचने की कोशिश करेगी।
पिछले कुछ सप्ताहो में यूपीए के नेताओं ने इस रणनीति को अपनाने का गंदा प्रयास किया। इसके तीन स्पष्ट संकेत हैं। पहला, यूपीए ने नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधा। गुजरात में कांग्रेस की आरंभिक रणनीति मोदी पर जमकर हमले करने की रही है। मोदी राजनीति लड़ाई में हमेशा कांग्रेस से आगे निकल गए। इस रणनीति को प्रतिकूल पाकर कांग्रेस ने इसके बाद अपने प्रचार में वैकल्पिक नीति अपनाते हुए ऐसा दिखाया मानो उनके लिए मोदी का कोई अस्तित्व नहीं है। केन्द्र में कांग्रेस ने पहले चरण में मोदी पर लगातार कई हमले किए। इस प्रक्रिया में उन्हें लगा कि उनकी स्थिति अच्छी हो गई है। जल्दी ही उन्हें एहसास हो गया कि उनकी रणनीति उल्टी पड़ गई और वह फिर से मोदी की अनदेखी करने का नाटक करने लगे।
दूसरा, केन्द्र सरकार ने इशरत ने इशरत जहां मामले में सीबीआई के जरिए जो रणनीति अपनाई उसने कई लोगों को परेशानी में डाल दिया। सीबीआई ने इस मामले को दबाने और लश्कर-ए-तौबया से संबंध की अनदेखी करने की रणनीति अपनाई तथा दस देश के समूचे सुरक्षा तंत्र को खोलकर रख दिया। इशरत जहां के एलईटी से कथित संबंधों के बारे में पहली चार्जशीट पर चुप्पी क्यों छाई रहीं? क्या गुप्तचर ब्यूरो ने इस हिस्से के बारे में कश्मीर में अपने सूत्रों से विस्तृत जानकारी ली थी? क्या भारत का सुरक्षा तंत्र और हमारी खुफिया एजेंसियों को एलईटी की बातचीत में सुनने का हक नहीं है, जिन पर निगरानी रखी जानी चाहिए और उनसे पूछताछ की जानी चाहिए? क्या ये सभी कदम आंतकवाद पर काबू पाने के लिए थे या एक अपराध की साजिश करने के लिए थे? इस सवाल का जवाब इस बात में है कि क्या कथित शिकार व्यक्ति के एलईटी से संबंध थे या नहीं। सरकार के जांच हथियार के रूप में सीबीआई ने एलईटी से संबंध के बारे में चुप्पी साधना उचित समझा।
डेविड हेडली की एनआईए पूछताछ में पैरा-168 को किसने हटाया,जिसमें एलईटी मॉडयूल के बारे में इसका जिक्र किया गया था? क्या सीबीआई एलईटी के सक्रिय सदस्यों की रिकॉर्ड की गई आवाज उनके भारतीय संपर्कों को पहचानने से इनकार करने की हद तक जा सकती है? क्या सीबीआई ने कुछ पुलिस वालों के साथ सौदेबाजी की है, जो कथित रूप से मुठभेड़ में शामिल थे और जिन्होंने अपना चरित्र एक आरापी से एक गवाह के रूप में बदल लिया, ताकि वे देश के सुरक्षा और खुफिया व्यवस्था की साख मिटा दें? मुठभेंड की सच्चाई की तह में जाए बिना मैंने ऊपर कुछ सवाल उठाए हैं, जो दस बात की तरफ संकेत करते हैं कि एलईटी के मॉडयूल को शहीद के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा है और भारत की सुरक्षा तथा खुफिया व्यवस्था को खलनायक बनाया जा रहा है। क्या राष्ट्रीय सुरक्षा की कीमत पर वोट बैंक बनाने के लिए इस तरह की सोची-समझी रणनीति अपनाई जा रही है?
तीसरी, इस संदर्भ में इंडियन मुजाहिदीन के शकील अहमद के बयान का विश्लेषण किया जाना चाहिए। 9/11 के बाद दुनिया का ध्यान विभिन्न आंतकवादी गुटों की तरफ गया। पाकिस्तान पर आरोप लगा कि वह भारत में सीमा पार से आंतकवाद को बढ़ावा दे रहा है। एनडीए सरकार ने सीमा पर प्रतिबंध लगाया। इस के बाद दंडियन मुजाहिदीन का गठन हुआ। पाकिस्तान एक ऐसा संगठन बनाना चाहता था, जो भारतीय दिखाई दे और जिसका संचालन करने के लिए उसमें अनेक भारतीय हों। बम बनाने की तकनीक और इसके लिए धन राशि सीमा पार से आती है। इसमें इंडियन शब्द होने के कारण पाकिस्तान को यह मौका मिला गया कि हर बार आंतकवादी हमला होने पर वह हमले में हाथ होने से इनकार कर देता है। अपने अस्तित्व में आने के बाद से इंडियन मुजाहिदीन भारत में बड़ी संख्या में हमलों के लिए जिम्मेदार है। कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता को इतिकास दोबारा लिखना चाहिए। उनका प्रयास 7इंडियन मुजाहिदीन की ऐसे व्यथित लोगों के संगठन के रूप में तस्वीर प्रस्तुत करना है, जिसमें गुजरात दंगों के पीडि़त शामिल हैं। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ और इंडियन मुजाहिदीन के गठन के पीछे पाकिस्तान की रणनीति की अनदेखी की। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे का साम्प्रदायिकरण करने का एक निराशाजनक प्रयास है।
(लेखक राज्यसभा में विपक्ष के नेता हैं।)
अरूण जेटली
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