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दिल्ली के ‘निर्भया’ कांड और बंगलुरु के ‘हिम्मतवाली’ कांड में कई समानताएं थीं। दोनों में बवॉयफ्रेंड के सिवाय कोई गवाह नहीं था। दिल्ली में अपराध बस के अंदर अंजाम दिया गया था, जबकि बंगलुरु में अपराध देर शाम जंगली क्षेत्र में अंजाम दिया गया था। लेकिन पुलिस ने सूझबूझ से अराधियों को सजा दिलवाकर एक मिसाल कायम की। | |||||||||
दिसंबर 2012 में दिल्ली के ‘निर्भया’ कांड के सुर्खियों में छाने से काफी पहले, 18 अक्टूबर को बंगलुरू का ‘हिम्मतवाली’ कांड चर्चा में आ चुका था। बंगलुरू विश्वविद्यालय के ज्ञानभारती कैंपस में ‘हिम्मतवाली’ के साथ आठ चंदन तस्करों ने सामूहिक दुष्कर्म किया था। घटना के छह दिनों के भीतर एक लेडी इंस्पेक्टर सहित सात पुलिस इंस्पेक्टरों की टीम ने मुस्तैदी और कड़ी मेहनत से अपराधियों को पकड़ लिया। इस सफलता ने यह सिद्ध कर दिया कि पुलिस अगर दक्ष हो और उसे पर्याप्त अधिकार दिए जाएं तो जटिल से जटिल अपराध को भी सुलझाने में वक्त नहीं लगेगा। सात पुलिसकर्मियों की टीम ने जिस तरकीब और तेजी से यह सफलता हासिल की, यह बंगलुरू पुलिस के ताजा इतिहास में एक उदाहरण है।
तत्कालिन डीसीपी (पश्चिमी) सिद्धरमप्पा ने इस बहुचर्चित केस को सुलझाने के लिए टीम में इंस्पेक्टर बलराज, नागराज, के.पी. सत्यनारायण, गीता कुलकर्णी, बाले गौड़ा, कोडानडरम और एस.के. मलथेश को शामिल किया था। मैसूर रोड पर ज्ञानभारती कैंपस में स्थित नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की पीडि़त छात्रा ‘हिम्मतवाली’ नेपाल की रहने वाली है इसलिए इस वारदात की गूंज विदेशों तक थी। उदय इंडिया से बातचीत में एक पुलिस सूत्र ने बताया कि जांच टीम में महिला इंस्पेक्टर गीता कुलार्णी को शामिल करने के सिद्धरमप्पा का निर्णय एक महत्वपूर्ण कदम था। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, ”इस घटना से संबंधित बहुत सारी बातें, जिसे शायद पीडि़ता किसी पुरुष अधिकारी को नहीं बताती, उसे गीता कुलकर्णी ने उजागर किया। इन सूचनाओं ने हमें सही दिशा दिखाई और अपराधियों के गैंग को गिरफ्तार करने तथा केस को तार्किक परिणति तक पहुंचाने में मदद मिली।’’ दिल्ली के ‘निर्भया’ और बंगलुरू की ‘हिम्मतवाली’ कांड में बहुत समानता थी। फर्क सिर्फ यह था कि ‘निर्भया’ अपराधियों की सजा देखे बिना दुनिया छोड़ गई, जबकि ‘हिम्मतवाली’ ने आठों आरोपियों को आजीवन करावास की सजा की गवाह बनी। दोनों ही मामलों में अपराधियों ने अपराध को अंजाम देते वक्त उनके ब्वॉयफ्रेंड को बाहर फेंक दिया था। गृह विभाग के प्रमुख सचिव ज्योति प्रकाश मिरजी का कहना है, ‘यद्यपि बंगलुरू केस ज्यादा जटिल था। मीडिया ने इसे खास तव्वजो भी नहीं दी, जैसा कि दिल्ली मामले में था, जिससे पूरा देश उबल रहा था। लेकिन तथ्य यह है कि हमारे अधिकारियों और अन्य लोगों ने छह दिन के अंदर ही केस को सुलझा लिया और अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया। वे बधाई के पात्र हैं।’ मिरजी बंगलुरू में बतौर पुलिस कमिश्रर अपनी सेवा दे चुके हैं और पुलिस को प्रेरणा देने के साथ-साथ, उसमें पेशेगत व्यवहार लाने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने पुलिस की किसी उपलब्धि को बगैर रैंक देखे, अपने साथियों की प्रशंसा करने से कभी पीछे नहीं रहे। यह प्रथा वर्तमान कमिश्रर डॉ. राघवेन्द्र अरुधकर ने भी जारी रखी है। जांच दल का हिस्सा रहे एक अधिकारी ने उदय इंडिया को बताया कि कैसे बंगलुरू-मैसूर राजपथ पर रामनगरम जिला के घने जंगलों में, 28 किलोमीटर अंदर बसे दूर-दराज के एक गांव मेतेरी डोड्डी से अपराधियों को गिरफ्तार करने में सफल हुए। जांच दल ने घटनास्थल पर एक कुल्हाड़ी देखी था। इस कुल्हाड़ी से ही यह संकेत मिला कि दुष्कर्म की घटना में चंदन तस्कर शामिल हो सकते हैं। इसी आधार पर जांच दल ने अपना काम शुरू किया। |
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एक अधिकारी ने बताया, ”ये अपराधी चंदन की लकड़ी के तस्कर हैं। उन्होंने पीडि़ता के साथ बलात्कार किया और उसके मोबाइल और जेवरात छिन लिए। यह गैंग नेपाली लड़की और उसके ब्वॉयफ्रेंड को अकेला देखकर आया। उन लोगों ने लड़के की पिटाई की और लड़की को सुनसान जगह ले जाकर बारी-बारी से बलात्कार किया। दुष्कर्म के बाद लड़की को अकेला छोड़, मोबाइल को लेकर चले गए। जब हमने लड़की के मोबाइल नंबर पर फोन किया तो उसे किसी ने उठा लिया। हमने मोबाइल टॉवर के आधार पर स्थान का पता लगाकर आगे की कार्रवाई शुरू की।’’
टीम की अकेली महिला पुलिस अधिकारी गीता कुलकर्णी सहित पुलिस अधिकारियों की टीम ने ऑर्गेनिक खेती सिखाने और गांव से शहरों में पुनर्वास के इच्छुक ग्रामीणों को मदद कराने वाले सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में गांव-गांव की खाक छानी। एक दूसरे अधिकारी ने बताया, ”इस दौरान हमने अपने हथियारों को छिपा रखा और मोबाइल को साथ रखा। हमारी तैयारी साफ और सावधानीपूर्वक थी। हम हर बात के लिए पूरी तरह तैयार थे कि कोई भी व्यक्ति हमारे बारे में यह न जान पाए कि हम कौन हैं और क्या कर रहे हैं।’’ सामाजिक कार्यकर्ता बनकर इस दल ने फूस की अस्थायी बनी झोपड़ी में अपराधियों से बात की और उन्हें राज्य सरकार के सामाजिक वेलफेयर स्कीम के तहत पुनर्वास के लिए राजी किया। बाहर निकलने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया। यह पूरा ऑपरेशन इतनी सावधानी से अंजाम दिया गया कि अपराधियों को यह शंका भी नहीं हो पाई कि वे पुलिस के साथ पहले हवालात, फिर पारापन्ना अग्रहरा केंद्रीय जेल की तरफ बढ़ रहे हैं। आठ में से छह मुजरिमों को दुष्कर्म के छह दिन के बाद 19 अक्टूबर को गिरफ्तार कर लिया गया। अगले दिन सातवें दोषी को भी उसी जगह से गिरफ्तार किया गया। आठवें दोषी को हाल में गिरफ्तार कर अपराधियों को गिरफ्तार करने की प्रक्रिया को पूरा कर लिया गया। 16 दिसंबर को निर्भया मामले में देशव्यापी जनाक्रोश के मद्देनजर ट्रायल लगभग रोजाना चला। लोक अभियोजक एस.वी. भट ने जिरह करते हुए, दोषियों के लिए मौत की सजा की मांग की। पुलिस एफआईआर और चार्जशीट इतना फूलप्रूफ था कि न्याय विफल नहीं हो सका। |
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फास्टट्रैक कोर्ट के मजिस्ट्रेट कृष्णमूर्ति संगन्नानवर ने छह अपराधियों को आजीवन कारावास की सुनवाई। इनमें एक नाबालिग था, जिसका केस जुवेनाइल कोर्ट को हस्तांतरित कर दिया गया। अपने फैसले में मजिस्ट्रेट ने कहा कि दफा 376 (ii)( g) आजीवन कारावास की सजा निर्धारित करती है। इस धारा को हाल में संशोधित किया गया है, जिसमें न्यायिक अधिकारी (मजिस्ट्रेट या जज) मौत की सजा सुना सकते हैं।
जिस दिन सजा सुनाई गई, उस दिन बंगलुरू शहर के पुलिस कमिश्रर राघवेन्द्र अरुधकर ने सभी सात पुलिस अधिकारियों को उनके काम के लिए बधाई दी।
बंगलुरू से हेमंत कुमार |