
भाजपा केंद्रीय नेतृत्व के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा को प्रदेश पार्टी की कमान सौंपने के फैसले से कर्नाटक की राजनीति में अचानक भूचाल आ गया है। सत्तारूढ़ कांग्रेस में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की जगह एस.एम. कृष्णा को लाने की मुहिम तेज हुई है तो जेडी (एस) सुप्रीमो एच.डी. देवेगौड़ा की एनडीए की ओर झुकने की चर्चाएं हैं जो दिलचस्प तो है मगर हैरान करने वाली नहीं।
कांग्रेस में एस.एम. कृष्णा को वापस सरकार की कमान देने की मुहिम तो समझी जा सकती है। कांग्रेसियों की नजर में सरकार की छवि लगातार गिर रही है और सिद्धरमैया को बनाए रखा गया तो पार्टी के लिए आत्मघाती होगा। यह धारणा येदियुरप्पा को प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाए जाने से और मजबूत हुई है क्योंकि येदियुरप्पा बेहद मेहनती और अप्रत्याशित कदम उठाने के लिए जाने जाते हैं। जनता में उनकी पकड़ का मुकाबला भाजपा ही नहीं, दूसरी पार्टियों में भी नहीं है।
इसके अलावा, सिद्धरमैया के अहिंदा समीकरण (दलित, पिछड़ा, और अल्पसंख्यक) से सरकार की छवि ऊंची जातियों यानी वोकालिग्गा, लिंगायत और ब्राह्मण विरोधी की बन गई है। यह कांग्रेस के लिए अस्वाभाविक-सी स्थिति है क्योंकि उसे एकमात्र ऐसी पार्टी माना जाता है जो सभी जातियों और वर्गों में संतुलन साधकर चलती है।
लेकिन सिद्धरमैया लगातार वोकालिग्गा और लिंगायतों को नाराज करते जा रहे हैं, जो चुनावी गणित में काफी मायने रखते हैं। इससे कर्नाटक में कांग्रेस नेतृत्व आलाकमान को यह समझाने की कोशिश कर रहा है कि नेत्त्व परिवर्तन जरूरी है। उनका मानना है कि कोई वोकालिग्गा नेता को लाया जाना चाहिए जिसकी सभी जातियों में इज्जत हो। इससे एस.एम. कृष्णा की ओर ध्यान गया है, भले उनकी उम्र काफी हो गई हो।
हालंकि कांग्रेस आलाकमान सिद्धरमैया को हटाने से डर रहा है क्योंकि पता नहीं इसके परिणाम क्या होंगे। सवाल है कि हटाने के बाद भी वे पार्टी के वफादार बने रहेंगे या कांग्रेस से अलग होकर अपने अहिंदा समीकरण के भरोसे 2018 के चुनावों में किंगमेकर बनने की भूमिका निभाना शुरू कर देंगे? पार्टी इसी वजह से अभी देखो और इंतजार करो की नीति पर चल रही है। पांच राज्यों के चुनावों के खत्म होने तक तो वह कोई कदम नहीं उठाना चाहती। वजह यह है कि असम के बाद कर्नाटक बड़ा राज्य है जहां कांग्रेस सत्ता में है। असम में अनिश्चितता के कारण कांग्रेस अलाकमान कर्नाटक में कोई छेड़छाड़ करने का जोखिम नहीं उठा सकता।
दूसरी तरफ, जेडी (एस) सुप्रीमो तथा पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा की एनडीए से पींगें बढ़ाने की कोशिश की चर्चाएं हैं। हालांकि पार्टी नेतृत्व इस बारे में न खंडन करता है, न स्वीकार करता है। हाल में देवेगौड़ा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र के बीच महादयी नदी के जल विवाद को सुलझाने का आग्रह करने के लिए मिले थे। लेकिन अगर मामला नदी विवाद का था तो देवेगौड़ा अकेले मोदी से क्यों मिले? इस सवाल का कोई वाजिब जवाब नहीं मिलता है।
”फिर से कमल खिला दूंगा दक्षिण में”
अपनी स्पष्ट समझदारी, दो-टूक राय, तीखी दलीलों से दूसरों को धराशायी कर देने वाले कन्नड़ के लाजवाब वक्ता और बेमिसाल नेता का राज्य के उत्तर में बिदर से लेकर दक्षिण में चमराजनगर और कुर्ग तक जनता की धड़कनों पर एक समान पकड़ है। बी.एस. येदियुरप्पा को यूं ही कर्नाटक की राजनीति की ‘तुफानी’ शख्सियत नहीं कहा जाता। वे किसानों से लेकर खेतिहर मजदूरों के हर मुद्दे पर संघर्ष करते रहे हैं और लगातार राज्य के दौरे पर रहते हैं। कर्नाटक भाजपा में वे इकलौते जन नेता हैं और राज्य की समूची राजनैतिक बिरादरी में भी उनका कोई मुकाबला नहीं है। हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उन्हें प्रदेश पार्टी अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालने को कहा। भाजपा केंद्रीय कार्यालय से उनके नाम के ऐलान के एक दिन बाद उदय इंडिया के विशेष संवाददाता एस.ए. हेमंत कुमार के साथ बातचीत में बी.एस. येदियुरप्पा ने कहा, ”मुझे मालूम है कि मेरे लिए आगे का रस्ता फूलों भरा नहीं है लेकिन मुझे यकीन है कि मैं पार्टी के निचले स्तर से लेकर ऊपर तक मजबूत करने में कामयाब हो जाऊंगा। जन धन योजना, मुद्रा बैंकिंग, स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया जैसे कार्यक्रमों से निचले स्तर पर एक गुपचुप क्रांति का दौर चल रहा है और ये कर्नाटक और केंद्र में भी गेम चेंजर साबित होंगे।” प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश:
आपके अल्पकालिक और दीर्घकालिक लक्ष्य क्या हैं?
राज्य का व्यापक दौरा करना और समाज के सभी वर्गों को जोड़कर पार्टी को मजबूत करना। इसके साथ मौजूदा राज्य सरकार की जन विरोधी नीतियों और करतूतों को पर्दाफाश करने के लिए जोरदार आंदोलन भी चलाने होंगे। लंबे समय में हम यह आश्वस्त करेंगे कि 2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को सकारात्मक वोट से पूर्ण बहुमत मिले, न कि सरकार विरोधी रुझाान का लाभ मिले।
आपने कहा कि भाजपा 2018 में कर्नाटक और केंद्र में भाजपा सरकारों के प्रदर्शन पर सकारात्मक वोट हासिल करेगी। आप कर्नाटक में भाजपा की पूर्व सरकार का कैसे बचाव करेंगे? उसकी तो बदनामी…
चुनाव धारणाओं पर लड़े जाते हैं। भाजपा सरकार के बारे में लोगों की धारणा यह है कि नेता आपस में झगड़ते रहे इसलिए पार्टी के खिलाफ वोट दिया। लेकिन सभी तीनों मुख्यमंत्रियों के तहत भाजपा सरकार का कामकाज अच्छा रहा है। यही असलियत है लेकिन नेताओं के झगडऩे से अलग छवि बनी। यह 1977 में केंद्र में जनता पार्टी की सरकार की तरह था। मोरारजी देसाई की अगुआई में पहली गैर-कांग्रेस सरकार का कामकाज बेमिसाल था लेकिन पार्टी में कलह बर्दाश्त के बाहर थी। कर्नाटक में भाजपा सरकार का भी यही हाल था। लेकिन हमने उससे सबक सीख लिया है।
आप कैसे कह सकते हैं कि आपके दो उत्तराधिकारियों का कामकाज अच्छा रहा है?
कौन मुख्यमंत्री बनता है, यह बेमानी है। हमारी नीतियां और जन समर्थक कार्यक्रम हमारी विचारधारा से निकलते हैं जो राष्ट्र को सबसे ऊपर रखती है। हम अपना घोषणापत्र पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद की आर्थिक विचारधारा के अनुसार तैयार करते हैं। इसका बुनियादी सिद्धांत अंत्योदय है। हमारी जन-केंद्रीत पार्टी है। हमारे सभी आर्थिक या सामाजिक कार्यक्रम जनहित में होते हैं। इसमें गरीबों में भी गरीब का ख्याल रखा जाता है। इन्हीं कार्यक्रमों को हमारे उत्तराधिकारियों ने लागू किया इसलिए कर्नाटक में भाजपा सरकारों का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है।
केंद्र में मोदी की अगुआई वाली सरकार के बारे में तो कुछ कहने की जरूरत ही नहीं है। मुद्रा बैंकिंग, स्र्टाट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया, जन धन योजना जैसे कार्यक्रमों से लाखों युवाओं, गरीबों, महिलाओं और मध्यवर्ग के लोगों को लाभ पहुंचा है। ये वाकई क्रांतिकारी कार्यक्रम हैं। हमारे विपक्ष के दोस्तों को अभी भी अंदाजा नहीं है कि कैसी मौन क्रांति हो गई है। समाज के निचले वर्गों के युवाओं और महिलाओं को कितना लाभ पहुंचा है। मेरे विपक्ष के दोस्त मोदी की आलोचना में अपना समय जाया कर रहे हैं। उन्हें करने दीजिए, लोग हमारे साथ हैं।
एक बार पार्टी से निकलने के बाद फिर भाजपा का अध्यक्ष पद पाकर आपको कैसा लगता है?
मैं दो वजहों से पीछे मुड़ा हूं। एक, लाखों कार्यकर्ताओं और बुजुर्गों की सेवा और त्याग से प्रेरणा पाने के लिए, और दूसरे, मैं अपनी गलतियों से सीख सकूं, ताकि मैं सावधान रहूं। कहावत है जो बीत गई वह बात गई। मैं कई बार कह चुका हूं कि समय सारे घाव भर देता है और समय ही सारे सवालों के जवाब देता है।
कांग्रेस के नेता आपको दागी कहते हैं आपकी टिप्पणी?
वही कांग्रेस नेता व्यक्तिगत बातचीत में मानते हैं कि मेरे नेतृत्व में सरकार ने काफी अच्छा काम किया। यह अलग बात है कि वे खुलकर नहीं कहते हैं। सच्चाई यह है कि किसी अदालत ने मुझे दोषी नहीं पाया, मुझे न्यायपालिका से राहत मिली, अब सिर्फ दो मामले लंबित हैं। आरोप लगाना तो आसान है। इस तरह आप वर्षों की मेहनत और खून-पसीने से बनाई किसी की छवि को तार-तार कर सकते हैं लेकिन मैं जुझारू हूं। मैं पांच दशक पहले सार्वजनिक जीवन में आया। मैं खासकर किसानों, गरीबों और कमजोर वर्गों के लिए संघर्ष करता रहूंगा। मुझे लोगों से ही प्रेरणा मिलती है। लोग ही मेरे स्वामी हैं।
तो, आपका मानना है कि आप अग्रिपरीक्षा में सफल रहे हैं?
इस अग्रिपरीक्षा ने मुझे और ताकतवर बना दिया है, मन में संकल्प भर दिया है। इससे कुछ मूल्यों के प्रति मेरी प्रतिबद्धता तगड़ी हुई है। मेरा मन साफ है। मैंने कानूनी रूप से कुछ भी गलत नहीं किया।
”हम 2018 के विधानसभा चुनावों में सकारात्मक जनादेश हासिल करेंगे, यह केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कर्नाटक में पिछली भाजपा सरकारों के बेमिसाल प्रदर्शन के आधार पर होगा।” — बी.एस. येदियुरप्पा
चतुर नेता देवेगौड़ा को लंबे समय का लक्ष्य साधने के लिए चाल चलने वाला माना जाता है। उनका मकसद शायद 2018 के चुनावों में अपनी पार्टी के लिए 50-60 सीटों पर जीत हासिल करने की कोशिश हो सकता है। चर्चा यह भी है कि हवा का रुख देखकर जेडी (एस) के कुछ विधायक 2018 चुनावों के पहले कांग्रेस या भाजपा में जा सकते हैं।
पार्टी में इस संभावित टूट को रोकने की लिहाज से देवेगौड़ा शायद सोचते हैं कि 2018 के चुनावों में भाजपा के साथ गठजोड़ करना ही एकमात्र उपाय है। इसी लंबी योजना के तहत देवेगौड़ा फिलहाल एनडीए के पाले में जाना चाहते हैं। इसमें रणनीति यह भी है कि आगे चलकर अपने बेटे, पूर्व मुख्यमंत्री तथा राज्यसभा सदस्य एच.डी. कुमारस्वामी के लिए कैबिनेट मंत्री का पद हासिल कर लिया जाए। जेडी (एस) अगर एनडीए में शामिल हो जाता है तो भाजपा उसे 2018 के चुनावों में सहयोगी बनाने का बाध्य हो जाएगी!
दिलचस्प यह है कि खासकर भाजपा में येदियुरप्पा के विरोधी नेता भी इस विचार के समर्थक हैं। उनका मकसद शायद येदियुरप्पा को औकात में लाना और जेडी (एस) से गठजोड़ करने को मजबूर करना है। यानी जेडी (एस) को एनडीए में लाने की मुहिम येदियुरप्पा के लिए 2018 में मुश्किल खड़ी करने के लिए है।
जेडी (एस) को एनडीए में लाने की फौरी वजह यह बताई जा रही है कि बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका में जेडी (एस) का गठजोड़ कांग्रेस से टूट जाएगा, जो 2015 के चुनावों में 198 सीटों में से 100 पर जीता था। इस तरह भाजपा का उम्मीदवार शहर का मेयर बन जाएगा और डेप्टी मेयर जेडी (एस) का होगा। यह बेंगलुरु के कई भाजपा नेताओं को अच्छा लगता है। लेकिन येदियुरप्पा तो अपनी नजरें पूरे कर्नाटक में डाल रहे हैं, सिर्फ बेंगलुरु में नहीं। इसलिए वे चतुर देवेगौड़ा की चाल को शायद ही स्वीकार करें, जिन्हें परोक्ष रूप से उनके विरोधियों का समर्थन प्राप्त है।
जेडी (एस) से गठजोड़ का मतलब है कि भाजपा को 80 से 100 सीटें छोडऩी पड़ेंगी और 2018 में सत्ता में आए तो उप-मुख्यमंत्री पद के अलावा कई कैबिनेट पद भी साझा करना पड़ेगें। यह राज्य के भाजपा कार्र्यकर्ताओं को स्वीकार नहीं होगा। कुछ भाजपा नेता भले देवेगौड़ा से पींगें बढ़ा रहे हों मगर येदियुरप्पा तो कांग्रेस और जेडी (एस) दोनों को ही चुनौती देने का मन बना चुके हैं और 24 अप्रैल से पूरे राज्य का सघन दौरा करने की योजना बना चुके हैं।
बंगलुरू से एस.ए. हेमंत कुमार